सरकारी विभागों में मालिकाना हक के विवाद से निगम खाली हाथ

-हाउसिंग बोर्ड, एडीए की आवासीय कॉलोनियों में व्यावसायिक प्रतिष्ठान

– मालिकाना हक को लेकर स्थिति नहीं साफ

अजमेर. शहर की विभिन्न आवासीय कॉलोनियों में धड़ल्ले से बढ़ रही व्यावसायिक गतिविधियों के कारण आवासीय कॉलोनियों में दिन रात वाहनों की रेलमपेल व शोरगुल से क्षेत्रवासी परेशान हैं। वहीं नगर निगम ऐसे संस्थानों से भू उपयोग परिवर्तन राशि या कॉमर्शियल चार्जेज नहीं वसूल पा रहा है। इससे निगम को करोड़ों के राजस्व का नुकसान हो रहा है।

शहर में ऐसे हालात करीब 35 साल से हैं। इसकी वजह विभागों में समन्वय का अभाव होने के साथ क्षेत्र निर्धारण व हस्तांतरण की शर्तें भी हैंँ। निगम का कहना है कि ऐसी कॉलोनियों की साफ-सफाई, स्ट्रीट लाइट सहित अन्य दायित्व वह संभाल रहा है तो उसे ही कब्जे के साथ निश्चित राशि मिलनी चाहिए। इससे यह मसला अधर में है।यूआईटी (अब एडीए) व हाउसिंग बोर्ड से संपत्ति हस्तांतरण नहीं

वर्ष 1988 में हाउसिंग बोर्ड की वैशाली नगर, सागर विहार, गुलमोहर कॉलोनी, जनता कॉलोनी वैशाली नगर, अजय नगर, जेपी नगर मदार क्षेत्र में कई आवासीय कॉलोनियां विकसित हुई थीें। इनका रखरखाव साफ सफाई का कार्य नगर निगम कर रहा है। लेकिन यहां व्यावसायिक शुल्क नहीं वसूल पा रहा। यहां खुलने वाले किसी प्रतिष्ठान को कॉमर्शियल स्वीकृति के नोटिस देने पर संपत्ति का स्वामित्व संबंधित विभाग का होता है। ऐसे में निगम संचालक से कॉमर्शियल चार्जेज नहीं वसूल पाता। हाउसिंग बोर्ड के जरिए भी भू-रूपांतरण राशि निगम को नहीं मिल रही जबकि शोरूम निरंतर खुलते जा रहे हैं।

निगम की जीसी में भी हुई चर्चा

नगर निगम की जीसी में पूर्व उपायुक्त पार्षद गजेन्द्र रलावता का कहना था कि 1988 में हाउसिंग बोर्ड ने आवासीय कॉलोनियां निगम को सौंपने की बात कही। निगम ने विकास शुल्क के रूप में 40 लाख रुपएमांगे। यदि निगम को कॉलोनियां हेंडओवर की जाती हैं तो नामांतरकरण, संपत्ति के बेचान-खरीद व व्यावसायिक शुल्क आदि वसूलने से निगम की आय बढ़ सकती है। जीसी में इस मुद्दे पर चर्चा कर प्रकरण आयुक्त देशलदान को भी बताया गया है।

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