– पारंपरिक माेहल्ले आज भी आबाद
-ताजमहल को खरीदने वाला सेठ का भी मकान था खजाना गली में
दिलीप शर्मा
अजमेर. खजाना गली का नाम यूं ही नहीं पड़ा। आपको जानकर अचरच होगा कि यहां न केवल सेठों की हवेलियां थी वरन यहां एक ऐसे सेठ भी रहा करते थे जिन्होंने अंग्रेजों से सात लाख रुपए में ताजमहल को खरीदने के कागज बनवा लिए थे यह सौदा बाद में निरस्त हुआ। यह सेठ मथुरा के राजा लक्ष्मणदास थे जो जैन परिवार के हैं और मथुरा में द़वारकाधीश मंदिर आज भी इनके उत्तराधिकारी संचालित करते हैं।
सेठों के खजाने व कोष सुरक्षित रखते थे
खजाना गली में सेठ मूलचंद सोनी की हवेली थी यह (1830- 1901) का काल रहा। इनके छठे वंशज मौजूदा समय में प्रमोद सोनी बताते हैं कि खजाना गली में उनकी पैतृक संपत्ति है। इसे कई भागाें में बनाया गया। इससे सटी संपत्ति राजा लक्ष्मणदास (1840 -1850) की थी वह ग्वालियर दरबार में कोषाधिकारी थे। लक्ष्मणदास ने तो अंग्रजों से ताजमहल भी खरीदने की तैयारी कर ली थी बाद में अंग्रेजों ने यह सौदा नहीं होने दिया लेकिन पुराने लोग तो यहां तक कहते हैं कि अंग्रेज इसमें से कीमती पत्थर गायब करवा दिए थे।
सेठों के कोषालय यहां सुरक्षित
इन सभी सेठों के खजाने तत्कालिक मुद्राएं आदि इनकी हवेलियों में सुरक्षित रखता था। दरअसल यह गली शहर की चारदीवारी के भीतर है इसलिए इसे सुरक्षित भी माना जाता है। लक्ष्मणदास की संपत्ति भी बाद में सोनी परिवार ने खरीद ली।खजाना गली में रेलवे की ट्रेजरी
भारत सरकार के रेलवे विभाग का कैश संग्रहण भी यहां सुरक्षित रखा जाता था। इसलिए तभी से इसे खजाना गली कहा जाता है। इसके साथ सुनारों की दुकानें होती थी इसलिए यहां सेठ ही नजर आते थे।कई पुराने मोहल्ले आज भी सौहार्द की मिसाल
यहां कई पुराने मोहल्ले आज भी सौहार्द व भाईचारे की मिसाल हैं। कायस्थ मोहल्ला,मोदियाना गली, नया बाजार, घसेटी बाजार, होलीदड़ा, इमली मौहल्ला आदि मोहल्ले एक दूसरे से सटे हैं। आपस में एक बंध होता है लेकिन अब लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि पड़ौसी के दुख दर्द का हाल नहीं ले पाते।
यहां रेलवे के कर्मचारी तनख्वाह लेने आते थे। रेलवे की ट्रेजरी यहीं होती थी। पुराने लोग तो यहां तक कहते हें कि कई बार खजाने में पैसा नहीं आता तो नगर सेठ सोनी परिवार वेतन वितरण करवा देते थे। बाद में सरकारी राशि का समायोजन हो जाता था।
रमेश सोनी
यहां सुनारों की दुकानें अब भी संचालित हैं। आसपास के लोग जेवर बनाने आते थे। खजाना गली तभी से अपने नाम से जानी जाती रही है।
चंद्र प्रकाश