एक्सक्लूसिव
नागौर. अवैध शराब पकड़वाने की मुखबिर प्रोत्साहन योजना दम तोड़ रही है। इनाम/प्रोत्साहन नहीं मिलने के चलते मुखबिर तक अब आबकारी/पुलिस की मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहे। पहले ही पांच साल से प्रोत्साहन के नाम से एक मुखबिर तक को इनाम नहीं मिला है और अब योजना में आई विसंगतियों ने और कोढ़ में खाज वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया।
सूत्रों के अनुसार मुखबिरों को प्रोत्साहित करने के लिए करीब बारह साल पहले यह योजना बनाई गई थी। बाहरी राज्यों से आने वाली अवैध शराब पकड़वाने पर नियमों के मुताबिक कमीशन/इनाम देना तय किया गया। इसके अनुसार गाड़ी की कीमत का आठ और माल का पांच फीसदी कमीशन/इनाम देना तय किया गया था। करीब हजार पेटी पर यह डेढ़ से दो लाख होता है। पकड़ी गई अवैध शराब की वीडियोग्राफी के बाद एसपी अथवा जिला आबकारी अधिकारी इसका प्रस्ताव बनाकर आबकारी विभाग के अतिरिक्त आयुक्त तक भेजता है। जहां कमेटी बैठक में तय कर यह राशि मुखबिर तक पहुंचाती है।
बताया जाता है कि पिछले पांच साल से किसी भी मुखबिर को चवन्नी तक नहीं मिली। करीब पांच साल में बाहरी राज्य से आने वाली अवैध शराब से भरी साठ गाडिय़ां पकड़ी गई। जब्त शराब और गाड़ी थाने में खड़े कर दिए गए। आरोपी जेल से जमानत पर छूट भी गए। इसके बाद भी जिन मुखबिरों के जरिए शराब पकड़ी गई, उनके इनाम का प्रस्ताव तैयार कर अतिरिक्त आयुक्त तक भेजा ही नहीं गया। पांच साल में करीब सत्तर मामलों में मुखबिरी करने वाले आज भी अपने इनाम का इंतजार कर रहे।
बिना लाभ क्यों दें सूचना…
सूत्रों के अनुसार पिछले साल अक्टूबर में सदर थाना पुलिस और डीएसटी की संयुक्त कार्रवाई में पचास लाख की शराब से भरा ट्रक पकड़ा गया था। उसके बाद पिकअप/छोटे वाहनों से अवैध शराब तो पकड़ी गई पर वो यहीं प्रदेश की रही। बाहरी राज्यों से आने वाली अवैध शराब का बड़ा माल/गाड़ी पकडऩा लगभग नागौर में थम सा गया है। इसका मुख्य कारण भी यही सामने आया कि पहले जान जोखिम में डालकर पुलिस/आबकारी को सूचना देते थे, इनाम/कमीशन मिला नहीं तो अब बेवजह रिस्क क्यों लें।
प्रस्ताव ही नहीं …
बताते हैं कि माल पकडऩे के बाद प्रस्ताव भेजने का चलन ही खत्म सा कर दिया गया। अवैध शराब पकडऩे पर खुद की पीठ थपथपा लेने के बाद यह भुला दिया जाता है कि किसी मुखबिर की मिली सूचना से यह सफलता हासिल की गई। उस मुखबिर को प्रोत्साहित करने का कोई ध्यान ही नहीं रखता। हालत यह कि पांच साल में कोई प्रोत्साहन का प्रस्ताव आगे भेजा भी या नहीं, इससे भी सब अनभिज्ञ हैं।
एक करोड़ से भी ज्यादा कमीशन…
एक अनुमान के मुताबिक करीब पांच साल में ऐसे साठ-सत्तर मुखबिर प्रोत्साहन राशि का इंतजार कर रहे हैं। केस दर्ज करने वाले की जिम्मेदारी है कि वो मुखबिर को प्रोत्साहन दिलाने की कवायद करे। पांच साल में नागौर (डीडवाना-कुचामन) के मुखबिरों का करीब एक करोड़ कमीशन बनता है जो मिला ही नहीं।
इनका कहना…
पिछले करीब पांच साल में किसी मुखबिर को प्रोत्साहन योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। हाल ही में इस नीति में कुछ संशोधन की आवश्यकता सामने आई है। शुक्रवार को भी इस संदर्भ में एक मीटिंग हुई, मुखबिर को वास्तविक इनाम क्या मिले, इस पर मंथन हुआ। कोशिश कर रहे हैं कि मुखबिरों को जल्द से जल्द प्रोत्साहन राशि दी जाए।
-मनोज बिस्सा, जिला आबकारी अधिकारी नागौर