नौनिहालों को खिलाड़ी तो बनाया, पर खर्चे के लिए भटक रहे संस्था प्रधान

नौगांवा. राजकीय विद्यालयों के संस्था प्रधान इन दिनों नौनिहालों को खिलाडी बनाने के फेर में प्रतियोगिता में आए खर्चे के लिए कार्यालयों के चक्कर लगाने को मजबूर है, लेकिन विभाग के अधिकारियों के पास इसका पर्याप्त बजट न होने के कारण वो विद्यालयों के संस्था प्रधानों को टालमटोल कर रहे हैं।

गौरतलब है कि शिक्षा विभाग की ओर से हर वर्ष सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय के कक्षा 6 से 8 के 11 से 14 आयु वर्ग के नौनिहालों की जिला स्तरीय क्रीडा प्रतियोगिता कराई जाती है, जिसमें विभाग की ओर से सभी विद्यालयों को अपने नौनिहालों को इसमें भाग दिलाने की अनिवार्यता है। इन्हीं प्रतियोगिता के विजेताओं को राज्य स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने भी भेजा जाता है। ऐसे में उच्च प्राथमिक विद्यालयों के संस्था प्रधान और शारीरिक शिक्षक स्कूली बच्चों को प्रतियोगिता में भाग दिलाने के लिए ले जाते हैं और बच्चों को प्रतियोगिता में लाने और ले जाने के परिवहन के खर्चे सहित उनके नाश्ते और भोजन की व्यवस्था भी जेब से भरने को मजबूर है।

एक खिलाड़ी का खर्च 800 रुपए

विद्यालय के संस्था प्रधानों ने बताया कि एक बच्चे को प्रतियोगिता में ले जाने का खर्चा एक दिन का लगभग 150 से 200 रुपए आता है और 4 दिन की प्रतियोगिता में लगभग 800 रुपए का एक बालक का खर्चा आता है। इस खर्चे के लिए विभाग की ओर से किसी भी बजट का प्रावधान नहीं है। ऐसे में इसका भुगतान जेब से ही करने को मजबूर होना पडता है।

विभाग एक ही, लेकिन विद्यालयों के लिए खर्चे का अलग प्रावधान

माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में छात्र कोष और विकास शुल्क का प्रावधान है, जिससे वहां के प्रतियोगिता में गए बच्चों के खर्चे का समायोजन छात्र कोष और विकास शुल्क के माध्यम से हो जाता है, लेकिन उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्र-कोष और विकास शुल्क का कोई प्रावधान नहीं होता, जिसके कारण यहां के संस्था प्रधानों को इस खर्चे का वहन अपनी जेब से करना पडता है।

बजट का अलग से प्रावधान करना चाहिए

इधर मामले में शारीरिक शिक्षक संघ अलवर जिलाध्यक्ष मक्खन सिंह गुर्जर का कहना है कि उच्च प्राथमिक विद्यालयों के नौनिहालों के जिला और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता का बजट का नाम मात्र का प्रावधान है। विभाग को इसके बजट का अलग से प्रावधान करना चाहिए, जिससे इसका भार विद्यालयों पर न पडे़। वहीं सेवानिवृत्त जिला शिक्षा अधिकारी अलवर के अनिल कौशिक का कहना है कि वैसे बच्चों के लिए बजट का प्रावधान होता है, लेकिन वो पर्याप्त नहीं है। ऐसे में विभाग को इस बजट में समय के साथ बढोतरी करनी चाहिए। जिससे विद्यालयों को समस्या का सामना नहीं करना पडे।

नौनिहालों को खिलाड़ी तो बनाया, अब खर्चे के लिए भटक रहे संस्था प्रधान

बजट का नहीं कोई प्रावधान, अब जेब पर पड रहा भार। बच्चों को प्रतियोगिता में लाने-ले जाने का परिवहन खर्च सहित उनके नाश्ते और भोजन की व्यवस्था भी जेब से भरने को मजबूर।

नौगांवा. राजकीय विद्यालयों के संस्था प्रधान इन दिनों नौनिहालों को खिलाडी बनाने के फेर में प्रतियोगिता में आए खर्चे के लिए कार्यालयों के चक्कर लगाने को मजबूर है, लेकिन विभाग के अधिकारियों के पास इसका पर्याप्त बजट न होने के कारण वो विद्यालयों के संस्था प्रधानों को टालमटोल कर रहे हैं।

गौरतलब है कि शिक्षा विभाग की ओर से हर वर्ष सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय के कक्षा 6 से 8 के 11 से 14 आयु वर्ग के नौनिहालों की जिला स्तरीय क्रीडा प्रतियोगिता कराई जाती है, जिसमें विभाग की ओर से सभी विद्यालयों को अपने नौनिहालों को इसमें भाग दिलाने की अनिवार्यता है। इन्हीं प्रतियोगिता के विजेताओं को राज्य स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने भी भेजा जाता है। ऐसे में उच्च प्राथमिक विद्यालयों के संस्था प्रधान और शारीरिक शिक्षक स्कूली बच्चों को प्रतियोगिता में भाग दिलाने के लिए ले जाते हैं और बच्चों को प्रतियोगिता में लाने और ले जाने के परिवहन के खर्चे सहित उनके नाश्ते और भोजन की व्यवस्था भी जेब से भरने को मजबूर है।

एक खिलाड़ी का खर्च 800 रुपए

विद्यालय के संस्था प्रधानों ने बताया कि एक बच्चे को प्रतियोगिता में ले जाने का खर्चा एक दिन का लगभग 150 से 200 रुपए आता है और 4 दिन की प्रतियोगिता में लगभग 800 रुपए का एक बालक का खर्चा आता है। इस खर्चे के लिए विभाग की ओर से किसी भी बजट का प्रावधान नहीं है। ऐसे में इसका भुगतान जेब से ही करने को मजबूर होना पडता है।

विभाग एक ही, लेकिन विद्यालयों के लिए खर्चे का अलग प्रावधान

माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में छात्र कोष और विकास शुल्क का प्रावधान है, जिससे वहां के प्रतियोगिता में गए बच्चों के खर्चे का समायोजन छात्र कोष और विकास शुल्क के माध्यम से हो जाता है, लेकिन उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्र-कोष और विकास शुल्क का कोई प्रावधान नहीं होता, जिसके कारण यहां के संस्था प्रधानों को इस खर्चे का वहन अपनी जेब से करना पडता है।

बजट का अलग से प्रावधान करना चाहिए

इधर मामले में जिलाध्यक्ष शारीरिक शिक्षक संघ, अलवर मक्खन सिंह गुर्जर का कहना है कि उच्च प्राथमिक विद्यालयों के नौनिहालों के जिला और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता का बजट का नाम मात्र का प्रावधान है। विभाग को इसके बजट का अलग से प्रावधान करना चाहिए, जिससे इसका भार विद्यालयों पर न पडे़। सेवानिवृत्त जिला शिक्षा अधिकारी, अलवर अनिल कौशिक का कहना है कि वैसे बच्चों के लिए बजट का प्रावधान है, लेकिन वो पर्याप्त नहीं है। ऐसे में विभाग को इस बजट में समय के साथ बढोतरी करनी चाहिए। जिससे विद्यालयों को समस्या का सामना नहीं करना पडे।

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