Piyush Pandey death: भारतीय विज्ञापन को नया अंदाज देने वाले शिल्पी एड गुरु पीयूष पांडे का गुरुवार को मुंंबई में निधन हो गया। वे 70 वर्ष के थे। पांडे न केवल विज्ञापन के जरिए ब्रांड्स को लोगों की जुबान तक लाए बल्कि सामाजिक जागरूकता फैलाने वाले अभियानों को घर-घर तक पहुंचाया। 1982 में ओगिल्वी जॉइन करने के बाद करीब चार दशक की यात्रा में उन्होंने विज्ञापनों को पश्चिमी शैली से निकालकर भारतीयता के भाव भरे।
हल्के-फुल्के शब्दों में बात कहने का अलग अंदाज
सरल उच्चारण और हल्के-फुल्के शब्दों में बात कहने का उनका अंदाज हमेशा याद किया जाएगा। भारत सरकार ने 2016 मेें उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल सहित दिग्गजों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, पीयूष पांडे क्रिएटिविटी के लिए जाने जाते थे। एडवरटाइजिंग की दुनिया में उन्होंने शानदार योगदान दिया। मैं उनके साथ हुई बातचीत को सालों तक संजोकर रखूंगा। उनके जाने से बहुत दुखी हूं। उनके परिजन के साथ मेरी संवेदनाएं हैं।’
जयपुरवासियों के लिए सदमे से कम नहीं
पांच दिन पूर्व फिल्मी दुनिया के चर्चित चेहरे असरानी के बाद ही शुक्रवार को विज्ञापन जगत के जाने माने शख्स पीयूष पांडे का निधन हम जयपुर वालों के लिए तो सदमे से कम नहीं है। पीयूष उन गिनी चुनी प्रतिभाओं में से थे जिनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा जयपुर में हुई लेकिन 25-30 वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपनी रचनात्मकता के बल पर मुंबई के विज्ञापन जगत में अपनी पहचान कायम की। स्कूल के समय से ही वे रेडियो जिंगल्स करने लग गए थे और क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी थे।
जयपुर से मुंबई पहुंचकर उन्होंने पूरे विश्व भर में अपनी और भारतीय विज्ञापन प्रतिभा का लोहा मनवाया। भारतीय विज्ञापन जगत की रचनात्मकता की पहचान ही उनसे होने लगी। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें मिले पुरस्कारों के एक लंबी सूची बन सकती है लेकिन मैं तो उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में श्रद्धांजलि देना चाहूंगा जो जयपुर की शान थे।
विज्ञापनों का भारतीयकरण किया
पीयूष पांडे विश्वस्तरीय विज्ञापन एजेंसी ओगिलवी बेन्सन एंड मैथर, जिसका बाद में नाम बदल कर ओगिलवी इंडिया हो गया, में अपने कॅरियर की शुरुआत करके उसके एग्जीक्यूटिव चेयरमैन बन गए। हालांकि वे मुख्यतः अपने एजेंसी के क्रिएटिव पक्ष से ही अधिक जुड़े थे लेकिन इस उद्योग की गहरी समझ होने के कारण एजेंसी के व्यावसायिक उत्तरदायित्व भी संभालने लगे। उनके विज्ञापन सीधे मन को छू लेते थे। इस क्षेत्र में उनके प्रादुर्भाव से पहले भारतीय विज्ञापन जगत पर पाश्चात्य जगत का भारी प्रभाव था, पीयूष ने उसके भारतीयकरण में अहम भूमिका निभाई। लोगों की जुबान पर चढ़े अनेक लोकप्रिय विज्ञापनों की टैगलाइन की रचना का श्रेय उन्हें ही जाता है।
अपनेपन से सुनाते थे जयपुर के किस्से
व्यक्तिगत रूप से, मुझे 1990 के दशक के प्रारंभ के वर्षों में जब ‘पत्रिका’ के मुंबई कार्यालय का दायित्व मिला तब मेरी स्वयं की कोई पहचान नहीं थी। स्वाभाविक रूप से जब मैंने अपने संपर्क बनाने शुरू किए तो पंडित विनोद शर्मा और पीयूष पांडे से जयपुर का होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक सहजता से मिल सका। फिर वह संपर्क कई वर्षों तक चला। वह जब भी मिलते बहुत स्नेह से मिलते और अपनेपन से जयपुर की बातें करते और किस्से सुनाते।
पत्रिका से गहरा नाता
जयपुर में बचपन बीतने के कारण पीयूष का राजस्थान पत्रिका से शुरू से ही गहरा नाता रहा। पत्रिका द्वारा संस्थापित विज्ञापन के राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार ‘कंसर्न्ड कम्युनिकेटर अवार्ड’ में वह काफी दिलचस्पी रखते थे। पुरस्कारों के लिए निर्णायक मंडल में भी वे सहर्ष शामिल होते थे। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का वे सदैव बड़े भ्राता जैसे ही स्मरण और सम्मान करते थे।
अजय टुंकलिया, ‘पीयूष की हंसी अब सिर्फ यादों में रह गई…’
विश्वास करना मुश्किल है कि पीयूष की हंसी अब सिर्फ यादों में रह गई है। एक ऐसा इंसान जिसने काम को ही जिंदगी बना दिया था। एक ऐसा इंसान जिसके लिए इमोशन ही स्ट्रेटेजी थी, और सादगी ही कला।
कुछ महीने पहले कांस (फ्रांस) में प्रोमेनेड पर मैंने उनसे पूछा, जिंदगी के इस मोड़ पर, आप मुझे क्या कहेंगे? उन्होंने कुछ ऐसा कहा जो आज भी मेरे दिमाग में गूंजता है। जो तुम असली हो, उसे मत बदलो। उन्होंने मुझे मेरे ही गाने की एक लाइन सुनाई ‘रहना तू है जैसा तू’…वह प्योर पीयूष थे। कोई बड़ी फिलॉसफी नहीं। बस सच।
उन्होंने हमारी एक पीढ़ी को यह यकीन दिलाया कि आप खुद हो सकते हैं – अपनी भाषा में बात कर सकते हैं, अपनी पूरी कहानी, अपना पूरा व्यक्तित्व सामने ला सकते हैं – और फिर भी सबसे जुड़ सकते हैं। कि आपको अपनापन महसूस करने के लिए उधार की सोफिस्टिकेशन पहनने की जरूरत नहीं है। अलविदा, पीयूष, ऐड वर्ल्ड हमेशा आपकी छाप और जादू को अपने साथ रखेगा।
विज्ञापन जगत ने खो दिया सृजनशील युगपुरुष- रमेश नारायण
विज्ञापन जगत की दिग्गज हस्ती और एशियन फेडरेशन ऑफ एडवर्टाइजिंग एसोसिएशंस (एएफएए) के स्ट्रैटेजी डायरेक्ट रमेश नारायण ने दिवंगत पीयूष पांडे को याद करते हुए कहा कि पांडे ने भारतीय क्रिएटिव सिनेरियो को नई दिशा दी और भाषा को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनाया। नारायण ने याद करते हुए कि कोरोनाकाल में या किसी भावनात्मक क्षण में जब भी उन्होंने सहयोग मांगा, पीयूष का जवाब हमेशा दो शब्द में ही रहता था- ‘यस पार्टनर’। उन्होंने कहा कि हमने एक महान विज्ञापनकर्ता नहीं, बल्कि एक बड़े दिल वाले मित्र और सृजनशील युगपुरुष को खो दिया है।
यादगार विज्ञापन और स्लोगन
–मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा..
-दो बूंद जिंदगी की
-इस बार मोदी सरकार
-क्या स्वाद है जिंदगी में
-दम लगा के हइशा
-हर घर कुछ कहता है
-ठंडा मतलब….।