प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक शिक्षा के विद्यार्थियों में लर्निंग की एक गंभीर समस्या देखी जा रही है। वर्तमान में प्राथमिक-उच्च प्राथमिक शिक्षा में बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान भी विद्यार्थी को नहीं होना, सामान्य लेख पढ़ने, समझने और अंकों के साथ बुनियादी जोड़ और घटाव करने की क्षमता विकसित नहीं होना, शिक्षा में बड़ी चुनौती माना जा रहा है। पढ़ना-लिखना और संख्यात्मक हुनर, आगे की शिक्षा और जीवनपर्यन्त सीखते रहने की बुनियाद को मजबूत करता है।
संख्या की पहचान और पहाड़े याद करने की एक वैज्ञानिक परंपरा होती है। अभ्यास के अलग-अलग तरीके मातृभाषा में होते हैं। संख्या को पहचानना और पहाड़े याद करने का मूलभूत अभ्यास मातृभाषा से ही संभव है, चाहे किसी भी प्रदेश की मातृभाषा हो। जब से प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक शिक्षा में अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं का बोलबाला बढ़ा है, उसके बाद से विद्यार्थियों में सीखने की क्षमता कम हुई है।
हम थोड़ा अतीत में जाएंगे तो प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप, जो पूरी तरह मातृभाषा पर निर्भर रहा है, जहां संख्या को पहचानना एवं अक्षरों का ज्ञान करवाना स्थानीय विधि से होता था। उस विधि से बच्चे जल्दी पहाड़े याद कर लेते और अक्षरों को पहचान लेते थे और वह प्रणाली आनंदमयी प्रणाली कहलाती थी। प्रत्येक अक्षर और अंक के साथ स्थानीय कहावतों का जुड़ाव रहा है।
शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय सर्वेक्षण और स्वयंसेवी संस्था प्रथम द्वारा पिछले वर्षों में किए जाने वाले सर्वेक्षणों से स्पष्ट होता रहा है कि प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थी साधारण जोड़-घटाव और गुणा तक नहीं कर पाते। पहाड़े बताने और दो अंकों की संख्याएं भी जोड़ घटा नहीं सकते। प्रत्येक सर्वेक्षण में स्पष्ट होने के बावजूद हमारा शैक्षणिक प्रबंधन इस पर गंभीर नहीं होता। पिछले दिनों हुए सर्वेक्षणों के नतीजे भी हमारे सामने हैं। शहरी क्षेत्र के 50% बच्चे भाषाई समझ और गणित में कमजोर हैं। सुकून देने वाली एक बात जरूर है कि ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थी भाषा और गणित में निपुण माने गए हैं। इसकी वजह स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्र में आज भी मातृभाषा में अक्षरों और अंकों का ज्ञान करवाया जाता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 तभी विकसित और शिक्षित हो सकेगी जब मातृभाषा को प्राथमिकता दी जाएगी। प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान के लिए स्थानीय भाषा में शिक्षा देने का काम संकल्पित होकर किया जाएगा और इसके लिए जांच और निगरानी की एक क्रियान्वयन योजना भी तैयार करनी होगी।
नए सिरे से शिक्षक, शिक्षा और पाठ्यचर्या को नवीन तरीके से डिजाइन किया जाना चाहिए। इस समय जो ग्रामीण क्षेत्र से विद्यार्थी आते हैं, वह अपनी समझ और पारिवारिक परिवेश के कारण मिनट, घंटे, दिन, हफ्ते, महीने और वर्ष की गणना में सक्षम होते हैं। देशभर के विद्यार्थियों को समान रूप से सक्षम बनाने के लिए और परख में एक जैसा परिणाम प्राप्त करने के लिए हमें शत-प्रतिशत रूप से मातृभाषा में पाठ्यक्रम को लागू करने का संकल्प लेना होगा।
सरकार को भी समझना होगा कि उच्च प्राथमिक शिक्षा तक स्थानीय परिवेश के शिक्षकों की भर्ती होने से मातृभाषा में शिक्षा देने का काम बुनियादी तौर पर आगे बढ़ेगा। बार-बार मांग उठती है कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में हो। सरकार को देखना होगा कि हमें प्राथमिक शिक्षा और उच्च प्राथमिक शिक्षा को मजबूती देनी है तभी माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा में अनुकूल सफलता मिलेगी।
अब मूलभूत साक्षरता और अंक ज्ञान के लिए राष्ट्रीय अभियान बनाए जाने पर नई शिक्षा नीति 2020 में स्थानीय और मातृभाषाओं में प्राथमिक शिक्षा देने का संकल्प सामने आया है। इस संकल्प को कामयाब करने के लिए संबंधित विद्यालयों में स्थानीय अध्यापकों की नियुक्ति होगी, जो मातृभाषा जानते हों। तभी बच्चों की लर्निंग को बढ़ाकर उनकी नींव को मजबूत बनाया जा सकेगा।