स्वर्णनगरी का गड़ीसर सरोवर, जो कभी शांति, स्थापत्य और जीवन का प्रतीक रहा — अब खुद जीवन की तलाश में है। तापमान 46 डिग्री को पार कर चुका है और सरोवर का जलस्तर चंद फीट रह गया है। यह वही सरोवर है जिसे संवत् 1373 में बसाया गया और जहां दो वर्ष तक का जल संग्रह हो सकता था। लेकिन अब यहां न पानी पहले जितना है और न यहां पहले जैसी रौनक। कुछ महीने पहले तक लबालब पानी से भरे इस ऐतिहासिक सरोवर में प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट और मछलियों की उछल-कूद आम दृश्य थे। आज जलीय पक्षी तटों पर खुले में विचरण कर रहे हैं और कैट फिश सतह के बेहद करीब देखी जा सकती हैं। घटते जल के साथ बढ़ते शिकारी खतरे ने जैवविविधता पर सीधा वार किया है। हर सुबह दर्जनों लोग ब्रेड के पैकेट लेकर गड़ीसर पहुंचते हैं। मछलियों को आटा व ब्रेड खिलाना धार्मिक परंपरा है। घटते पानी ने मछलियों को सतह पर ला दिया है, जहां उनके शिकारियों और रोगों की चपेट में आने का खतरा मंडरा रहा है।
सैलानी मायूस…. अब दर्द का दृश्य
गड़ीसर एक तालाब ही नहीं, जैसलमेर का फिल्मी चेहरा भी है। टशन, अलादीन, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो जैसी कई फिल्मों की शूटिंग यहीं हुई है।
केवल कागज़ों में रोक
नियम कहते हैं कि गड़ीसर में नहाना और कपड़े धोना वर्जित है। लेकिन हकीकत इसके उलट है। कैमिकल युक्त साबुन, डिटरजेंट आदि सीधे जल में मिल रहे हैं। एक समय पीने योग्य रहा यह पानी अब दुर्गंध देने लगा है।
फैक्ट फाइल
-1373 संवत् में निर्माण हुआ गड़ीसर का
-1913 संवत् काक नदी से जल आवक शुरू हुई
-2 वर्ष तक उपयोग के लिए जल संग्रहण की क्षमता
12 प्रकार की नावें संचालित हो रही है सरोवर में
यह है हकीकत
गड़ीसर में जलचर जीवन अब आंकड़ों में नहीं, आखिरी सांसों में है। जैसलमेर की यह सांस्कृतिक धरोहर न केवल पर्यटन की रीढ़ है, बल्कि एक पारिस्थितिक तंत्र भी है।
प्रभावी प्रयासों की दरकार
गड़ीसर सरोवर पर सीसीटीवी निगरानी और सुरक्षा गाड्र्स की व्यवस्था की दरकार है। यहां पानी की वैकल्पिक आवक व्यवस्था के लिए प्रयास होने चाहिए।.स्थानीय जागरूकता और नियमित सफाई अभियान से इसकी सूरत संवरेगी। गड़ीसर सिर्फ पर्यटन स्थल नहीं, जैसलमेर की आत्मा है। यही सूख गया, तो शहर की सांस्कृतिक पहचान भी दरक जाएगी।
पुष्पेन्द्र व्यास, पर्यटन व्यवसायी