बड़ोपल व लूणकरणसर झीलों को रामसर साइट बनाने का प्रस्ताव

श्रीगंगानगर. प्रवासी पक्षियों का ठिकाना बनी हनुमानगढ़ जिले की बड़ोपल झील और बीकानेर जिले की लूनकरणसर झील को रामसर साइट के रूप में घोषित करवाने के प्रयास शुरू हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से सऊदी अरब की राजधानी रियाद में आयोजित मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी कोप 16) में विशेष अतिथि के रूप में भाग ले रहे लैंड फॉर लाइफ अवार्डी प्रो. श्यामसुन्दर ज्याणी ने यह मुद्दा विश्व आद्र्रभूमि कन्वेंशन की महा सचिव मुम्बा मुसोंदम •ाोलिसवा के समक्ष उठाया। इस दौरान दोनों के बीच पारिवारिक वानिकी गतिविधियों, भूमि संरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत के साथ -साथ पश्चिमी राजस्थान में वेटलैंड्स के संरक्षण को लेकर बातचीत हुई। अनूपगढ़ जिले की रायङ्क्षसहनगर तहसील के गांव 12 टीके के निवासी प्रो. ज्याणी पारिवारिक वानिकी के प्रणेता हैं। उनकी प्रेरणा से लगाए गए लाखों पौधे आज पेड़ बन कर छांव और फल दोनों दे रहे हैं।
प्रो. ज्याणी ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि लूनकरणसर झील व हनुमानगढ़ जिले की बड़ोपल झील को रामसर साइट के रूप में घोषित करने के प्रस्ताव पर महासचिव ने सकारात्मक रुख दिखाते हुए इन्हें रामसर साइट घोषित करने में सहयोग का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि वे
जल्द ही अपने उच्चाधिकारियों को इसके बारे में अवगत करवा कर आवश्यक कार्रवाई के लिए निर्देश देंगी। यह दोनों झीलें हर साल लाखों प्रवासी पक्षियों का ठिकाना बनती है। अगर इन्हें रामसर साइट घोषित कर दिया जाता है तो प्रवासी पक्षियों और झीलों के संरक्षण में यह मील का पत्थर साबित होगा।

भारत में रामसर साइट

दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा 85 रामसर साइट भारत में है। तमिलनाड़ु में सर्वाधिक 18 रामसर साइट है। राजस्थान में दो रामसर साइट केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान व सांभर झील है। राज्य सरकार ने इनके अलावा चांदलाई जयपुर, खींचन जोधपुर, लूनकरनसर बीकानेर, मीनार तालाब उदयपुर तथा कनवास पक्षी विहार कोटा को रामसर साइट बनाने का प्रस्ताव केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजा हुआ है।

क्या है रामसर साइट

रामसर साइट उन आद्र्रभूमियों (वेटलैंड्स) को कहा जाता है जो अंतरराष्ट्रीय महत्व की होती हैं। इनका चयन 1971 में ईरान के रामसर शहर में हुए सम्मेलन के तहत किया जाता है । यह सम्मेलन आद्र्रभूमियों के संरक्षण और उनके सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। इसका मुख्यालय स्विट््जरलैंड में है। आद्र्रभूमियां जैव विविधता का खजाना हैं। ये पक्षियों, मछलियों और अन्य वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करती हैं। इसके अलावा, ये पानी के भंडारण, बाढ़ नियंत्रण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मददगार होती हैं।

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