पड़ताल
नागौर. दिल की बीमारी के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की तादात बढ़ रही है। देश में हर साल करीब ढाई लाख ऐसे बच्चे जन्म ले रहे हैं। राजस्थान में इनकी संख्या करीब सात हजार के आसपास है। खास बात यह है कि इनमें करीब बीस फीसदी का ही तुरंत इलाज हो पाता है।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के तहत मुफ्त इलाज लेने के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ता है। पिछले करीब सात महीने में अकेले नागौर जिले में दिल से जुड़ी बीमारी का सिर्फ चार बच्चों का ऑपरेशन हो पाया है। करीब आधा दर्जन इस कतार में लगे हैं। पिछले नौ साल में ऑपरेशन करवाने वाले बच्चों की संख्या 338 हो चुकी है। वैसे तो चिरंजीवी और आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त ऑपरेशन हो रहे हैं पर इन बच्चों को चिन्हित करने का काम सुस्त है।
सूत्र बताते हैं कि हर ब्लॉक पर ऐसे बच्चों को चिन्हित कर उनका कार्ड बनाने के लिए दो-दो टीमें रहती हैं। स्कूल/मदरसा और आंगनबाड़ी के जरिए भी स्क्रीनिंग कर दिल या फिर कटे होंठ/तालू, मुड़े पैर, सुन्न पड़े कान वालों को उपचार के लिए चिन्हित किया जाता है। बताया जाता है कि इस काम में पहले जैसी तेजी नहीं रही । कोरोना काल के बाद से यह काम धीमा है। हालांकि जिम्मेदार इससे इनकार करते हैं।
परेशानियां भी खूब…
असल में नागौर से चिन्हित बच्चों का ऑपरेशन जयपुर ही होता है। एसएमएस समेत अन्य सरकारी अस्पतालों में एक साल से कम उम्र के बच्चों का ऑपरेशन नहीं हो पाता है। कई बड़े प्राइवेट अस्पताल सरकारी सुविधा से या तो जुड़े नहीं या फिर इतनी उलझनें पैदा कर देते हैं कि आरबीएसके के तहत मुफ्त ऑपरेशन नहीं करवा पाते। राजकोट गुजरात के सत्यसांई अस्पताल में यह उपचार मुफ्त किया जा रहा है।
बताया जाता है कि दिल की बीमारी वाले बच्चों की संख्या बढ़ रही है पर साधन-संसाधन अब कम हैं। देशभर में बच्चों के दिल का ऑपरेशन करने के लिए कम से कम पांच सौ संस्थान/अस्पताल चाहिए पर हैं केवल साठ-सत्तर। जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण है, ऐसे में करीब दस फीसदी बच्चों की एक साल में मौत हो जाती है।
इनका कहना
गर्भावस्था के दौरान 20-22 हफ्ते में सोनोग्राफी से बच्चे के हार्ट अथवा अंग की विकृति का पता लग जाता है। अधिक उम्र में मां बनने, बदलती लाइफ स्टाइल/खान पान, अनावश्यक दवा का उपयोग इसके कारण हैं। गाइड लाइन के मुताबिक गर्भवती को करीब पांच माह बाद सोनोग्राफी करवाना चाहिए, हालांकि बहुत कम ही करवाती हैं। कई जन्मजात विकार बच्चे पैदा होने के बाद ही पता लगते हैं।
-डॉ. शैलेन्द्र लोमरोड, वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ,
एमसीएच विंग पुराना अस्पताल, नागौर
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दिल की बीमारी से जुड़े बच्चे चिन्हित हो रहे हैं और इनका ऑपरेशन भी मुफ्त करवाया जा रहा है। कुछ अस्पताल छोड़ दें तो लगभग सभी बड़े अस्पतालों में यह कार्य जारी है। वैसे नागौर के बच्चों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता।
-डॉ शुभकरण धोलिया, नोडल अधिकारी (आरबीएसके), नागौर।