इस तरह निशान लगाकर टाइगर बनाता है अपना इलाका, 50 किमी तक होती है टेरेटरी

अलवर। टाइगर की कहानियां दिलचस्प हैं। जितना पढ़ो उतना ही मजा आता है। टाइगरों की टेरेटरी को लेकर एक और दिलचस्प बात हम आपको बताने जा रहे हैं। टाइगर अपनी टेरेटरी का निर्धारण पेड़ पर लगे पंजों के मुताबिक भी करते हैं। पेड़ों पर वह पंजों के निशान लगाते हैं ताकि दूसरा टाइगर उसमें प्रवेश नहीं करे। सरिस्का के कई पेड़ों पर पंजों के निशान यही बताते हैं। सरिस्का टाइगर रिजर्व पहले कुछ बाघों में टेरेटरी को लेकर संघर्ष भी हुआ है। यहां के कई बाघों की टेरेटरी 50 किमी से भी ज्यादा है। इस दूरी को टाइगर अधिकतर रात को नापता है। यानी रात को ही वह चलता है। दिन में आराम करता है।

सरिस्का में पूर्व राजाओं की ओर से बनाए गए वॉच टॉवर से जैसे ही कुछ दूरी पर मुख्य मार्ग की ओर बढ़ेंगे तो यह एरिया बाघ एसटी-15 का है। इसी क्षेत्र में एक पेड़ के तने पर काफी खरोंच लगी हैं। गाइड जितेंद्र सिंह ने बताया कि यही खरोंच के निशान टाइगर की टेरेटरी को बयां कर रहे हैं। पेड़ों के तने पर निशान छोड़कर टाइगर अपनी सीमा का निर्धारण करते हैं। इसके अलावा वहीं पर पेशाब करते हैं ताकि गंध से दूसरे टाइगर को इलाके के बारे में पता लग सके। जमीन पर भी खरोंच करते हैं। इन संकेतों से वह दूसरे टाइगरों को संकेत देते हैं कि यह उनकी सीमा है। उसमें प्रवेश न करें।

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टाइगर की सरहद 50 किमी तक, एक बार करता है शिकार

सरिस्का के एक सीनियर रेंजर का कहना है कि टाइगर का एक साइड का इलाका करीब 10 किमी का होता है। ऐसे में चारों ओर उसका पूरा क्षेत्र करीब 40 किमी का होता है। यह एक फीमेल टाइगर का कॉन्सेप्ट है। वहीं नर टाइगर का एरिया 50 किमी तक का होता है। रातभर वह उस सरहद पर चलता है। शिकार करता है। एक टाइगर एक बार जानवर का शिकार करता है, जिसे तीन दिन तक खाता है।

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