धौलपुर. राजाखेड़ा कस्बे में अतिक्रमण और पुलिस की लापरवाही से तंग बाजारों में भी नो एंट्री के बाद भी घुसते तिपहिया और चौपहिया वाहन, आड़े तिरछे खड़े दोपहिया वाहन अब निरंतर जाम का कारण बन रहे हैं। जिससे लोगों को चलने की जगह जाम में रेंग रेंगकर निकलने को मजबूर होना पड़ रहा है। साथ ही जाम से हो रहे वायु प्रदूषण से भी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, कागजी घोड़े दौड़ाने वाला प्रशासन अतिक्रमण को हटाना तो दूर सडक़ों की सीमा से दूर भी नहीं कर पाया है।
क्या हैं हालात
मुख्य बाजार में थाने के पास मनोरमा की कोठी से रामखिलाड़ी चौराहा तक पुराना बाजार है जो बेहद सांकड़ा है। इसमे चौपहिया वाहनख् ठेला, हाथ ठेला, रिक्शा आदि का प्रवेश दिन में वर्जित है। लेकिन दिन भर इन वाहनों के प्रवेश से जाम लगा रहता है और एक किलोमीटर की दूरी पार करने में घंटों तक लग जाते हैं। इन बाजारो में आने वाले लोग अपने दोपहिया वाहनों को भी आड़ा तिरछा खड़ा कर देते हैं। यह भी जाम का कारण बनता है। व्यापारियों ने पुलिस से अनेक बार दिन में पैदल गश्त करवाकर ऐसे वाहनों पर कार्रवाई की मांग कर चुके हैं। सीएलजी बैठकों में भी यह मांग लंबे समय से उठ रही है पर जनता के दर्द को सुन्नने वाला कोई नहीं है।
गौरव पथ का गौरव हुआ समाप्त
रामखिलाड़ी चौराहा से पुलिस चौकी टाउन तक गौरव पथ और बाइपास मार्ग नया बाजार है। लेकिन ये भी पूरी तरह अतिक्रमियों के कब्जे में आ चुके हैं। 60 फीट छोड़ गौरव पथ 6 फीट की गली में सिकुड़ चुका है। बाइपास मार्ग भी सडक़ के मध्य से 55 फीट तक निर्माण या अन्य कार्य के लिए प्रतिबंधित है लेकिन हालात यह है कि लोगों ने 50 फीट तो दूर सडक़ पर भी कब्जा कर लिया है। लेकिन दिन भर इन मार्गों से गुजरते जिम्मेदार अधिकारियों को यह सब दिखता ही नहीं है या फिर देखना नहीं चाहते।
आंदोलनों के बाद कुछ दिन खानापूर्ति फिर पुराने हाल
विगत दिसंबर माह में बाई पास मार्ग पर एक ट्रोला अनियंत्रित हो गया और उसने आधा दर्जन दुर्घटनाएं कर अनेक लोगों को कुचल दिया था। जिसके बाद जमकर उपद्रव हुआ और घटना के कारणों में सडक़ पर अतिक्रमण मुख्य कारण मिला। सडक़ सुरक्षा समिति की बैठक हुई। अतिक्रमण हटवाने के लिए सार्वजनिक निर्माण विभाग ने सूचियां तैयार तक कर ली पर उसके बाद फिर वही हालात जस के तस। नई सरकार ने भी आते ही 100 दिन की कार्ययोजना में अतिक्रमण को मुख्य स्थान दिया और जिम्मेदार अधिकारी कागजों में ही अभियान संचालित कर अपना गुड वर्क दिखा गए। पर जमीनी हालात नहीं बदले।
राह चलना हुआ दूभर
स्टेट हाइवे, बाइपास मार्ग, गौरव पथ, मुख्य बाजार, अंदुरुनी गालियां आदि ऐसा कोई स्थान नहीं है जो अतिक्रमण से बचा हो। इन सडक़ों पर निकलना मुश्किल हो गया है। अतिक्रमण स्थायी भी है और अस्थायी भी। राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में स्थायी पर कभी कार्यवाही नहीं हुई। जबकि अस्थायी अतिक्रमण हटाने के लिए चलाए जाने वाले अभियान मात्र कुछ ही घंटों तक पर प्रभावी रहते हैं। उसके बाद फिर वही हालात। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी जिम्मेदार अधिकारी इनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही न कर अतिक्रमियों को सुरक्षा देते ही प्रतीत होते हैं।