Kalakand Video: कहते हैं व्रत हो या फिर त्योहार, कुछ मीठा खरीदने की बात आती है तो सबसे पसंदीदा मिठाई है ये कलाकंद। खासकर दिवाली में कलाकंद का भोग मां लक्ष्मी को न चढ़ाओ तो पूजा अधूरी सी लगती है। कलाकंद को आजकल लोग मिल्क केक भी कहते हैं। कलाकंद का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प रहा है। कहा जाता है आज़ादी से जुड़ा है कलाकंद का इतिहास, तो जानते हैं इस लोकप्रिय मिठाई के बारे में।
आजादी से जुड़ा है इसका इतिहास
कलाकंद की कहानी बेहद ही अनोखी है, या फिर ये भी कहें कि बनाने चले थे कुछ और, बन गया कुछ और। तब से आज तक देश भर में सबसे ज्यादा बिकने वाली मिठाइयों में से एक है ये कलाकंद। ये कहानी पाकिस्तान से शुरू हुई थी। बताया जाता है कि आजादी से पहले पाकिस्तान में रहने वाले बाबा ठाकुर दास एक हलवाई थे। तो कहानी ऐसे शुरू होती है: एक दिन वो दूध उबाल रहे थे और दूध पट गए। इसे देख दास जी बहुत दुखी हुए थे। फिर उन्होंने इससे किसी तरह बचने का सोचा और पटे हुए दूध को माध्यम आग पे पकने लगे। और यह देखकर दास जी हैरान हो गए कि दूध में छोटे-छोटे दाने आने लगे हैं। तो बाद में जीने इसमें चीनी मिलाया और उससे और पकाया। घंटों की मेहनत रंग लाई और इसी तरह एक स्वादिष्ट मिठाई यही की कलाकंद बन गई, जिसका स्वाद बेहद लाजवाब था।
आखिर कैसे इस मिठाई का नाम कलाकंद पड़ा?
जब लोगों ने इस मिठाई को चखा, तो वे दंग रह गए और दास जी से इसका नाम पूछा। तो दास जी ने हंस के कहा, “ये तो कला है,” और इसका नाम तब से कलाकंद पड़ गया। फिर दास परिवार आजादी के बाद राजस्थान के अलवर में आकर बस गए थे और कलाकंद को और भी लोकप्रिय मिठाई बनाया। आज उनकी तीसरी पीढ़ी इस पारंपरिक मिठाई को बना रही है और देश-विदेश में इसका अनोखा स्वाद चखा रही है।
अटल जी को भी बेहद पसंद थी ये मिठाई
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी काफी शौकीन थे अलवर के कलाकंद मिठाई के और वह काफिले को रोककर दास परिवार का बना कलाकंद मिठाई जरूर खा के जाते थे। वह इस स्वादिष्ट मिठाई का आनंद लेना कभी नहीं छोड़ते थे।