धनतेरस की कथा (dhanteras ki kahani )
Dhanteras Katha: पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे, तब लक्ष्मी जी ने भी साथ चलने देने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा, अगर मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। उस समय लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूलोक पर आ गईं।
कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा, जब तक मैं न आऊं तुम यहीं ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मीजी के मन में कौतूहल जागा, आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना कर भगवान स्वयं चले गए।
डॉ. अनीष व्यास के अनुसार काफी देर तक रूकने के बाद आखिरकार लक्ष्मी जी से न रहा गया और वो भी भगवान के पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया, जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर लक्ष्मीजी मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं।
आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं, उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप देते हुए बोले, मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान के खेत में चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा, तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई, इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मीजी ने किसान के घर को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए, फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।
विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा, इन्हें कौन जाने देता है, यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रहीं थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला, नहीं! अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।
तब लक्ष्मीजी ने कहा, हे किसान! तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है, तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपये भरकर मेरे लिए रखना। मैं उस कलश में निवास करुंगी, किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी।
लक्ष्मी जी ने आगे कहा, इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया. उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। तभी से हर साल तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।
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