नौगांवा.रामगढ विधानसभा में उपचुनाव की बिसात बिछ चुकी है। राजनीतिक पार्टियों सहित चुनाव लड रहे नेता और कार्यकर्ता वोटरों से सम्पर्क साधने में लग गए हैं। रामगढ विधानसभा के हजारों वोटर जो रोजी-रोटी की जुगत में अन्य राज्यों में पलायन कर गए। जिसके कारण इन परिवारों की दीवाली भी इनके घरों से कोसों दूर ही बनेगी। दीपावली पर इनके घर आंगन रोशन नहीं होंगे और उनमें सन्नाटा पसरा रहेगा।
मेवात अंचल के गांवों में जाकर देखा जाए तो उनमें सन्नाटा है। मकानों पर ताले लगे हुए है, आंगन सूना है। रामगढउपखण्ड के गांव डावरी, बरामदा हाजीपुर, नंगलीवाल, मेघाबास, रणवीरबास, बाडीबास, कोटाकला, नौगांवा, चीडवा, बहरीपुर, रसगण, रूपबास, शेरपुर, झण्डाखेडी, तिलवाड नसवारी, नाखनौल, चौमा सहित अन्य गांवों के लोग रोजी-रोटी कमाने के लिए अन्य राज्यों के लिए पलायन कर गए है। गांवों में फैला ये सन्नाटे का डर नेताजी सहित उनके पार्टी पदाधिकारयों और कार्यकर्ताओं को भी सता रहा है।
चुनावी वादों का दंश झेल रहे मेवात अंचल के दर्जनों गांवों के परिवार रोजी- रोटी की जुगत में दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर है। इन परिवार वालों की दशकों से सुध लेने वाला कोई नहीं। बस इन परिवारों को पार्टियों ने अपना वोट बैंक मान रखा है और हर चुनाव में इनकी याद आती है। चाहे कोई भी पार्टी जीती हो, परन्तु आज तक किसी भी पार्टी के नेता ने इनके दर्द की सुध नहीं ली। अब चुनाव के नजदीक आते ही नेताजी उनका हाल चाल जानने लगे है।
गौरतलब है कि रामगढ विधानसभा में हर साल मजदूरी पर पंजाब, गुजरात और हरियाणा के लिए पलायन कर जाते है और 4 से 5 माह काम कर वापस अपने घर लौटते है। ये सैकडों परिवार अपनी आजीविका के लिए समीपवर्ती राज्यों के लिए पलायन करते है। चूंकि इन राज्यों में इन दिनों कपास का सीजन रहता है। जहां ये लोग परिवार सहित मजदूरी के लिए जाते हैं। जनवरी-फरवरी तक वापस लौटते हैं। ऐसे में अगले माह में होने वाले चुनाव में नेताजी के गणित को ये वोटर बिगाड सकते हैं। दोनों पार्टियों के पदाधिकारियों की ओर से बूथ स्तर पर लिस्ट बनाई जा रही है और उनसे सम्पर्क साधा जा रहा है कि वो चुनाव में उनके पक्ष में मतदान कर उन्हें विजयी बनाए।
रोजगार का अभाव
रामगढ विधानसभा में रोजगार का अभाव है। फिर खेती, बाडी भी लोगों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। बडे परिवार होने के कारण जमीन का कुछ हिस्सा ही बांटे में आ रहा है, जो परिवार का पेट पालने के लिए काफी नहीं है। दूसरी ओर कुछ लोग बांटे पर जमीन लेकर खेती कर रहे हैं, जिससे परिवारों को खर्चा नहीं चल पा रहा। इसी कारण से उनके समाज के लोग अन्य राज्यों में मजदूी के लिए जा रहे हैं। रामगढ में ही अगर रोजगार के अवसर मिलते तो उन्हें बाहर कमाने के लिए नहीं जाना पडता। अभी कई गांवों में तो 50 फीसदी परिवार गांवों से पलायन कर अन्य राज्यों में मजदूरी करने चले गए। चुनाव में इन वोटरों का अहम रोल रहता है, इनके न होने से चुनाव के गणित पर फर्क पडेगा।