मानदेय कार्मिकों का मानदेय नहीं, दीपावली पर भी उम्मीद अधूरी

श्रीगंगानगर: आंगनबाड़ी की मानदेय कर्मियों ने मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है कि उन्हें नियमित मानदेय नहीं मिला है। इन कर्मियों का कहना है कि दिवाली का त्योहार नजदीक आने पर उम्मीद जगी थी कि उनके घर रोशन होंगे, लेकिन मानदेय के अभाव में यह संभव नहीं हो पा रहा है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, साथिन और आशा सहयोगिनों ने जिला कलक्टर, सांसद और विधायकों के माध्यम से अपनी पीड़ा मुख्यमंत्री तक पहुंचाई है, लेकिन अब तक उनका मामला अनसुलझा है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा सहयोगिनन साथिन संघ की जिलाध्यक्ष सीता स्वामी का कहना था कि पूरे जिले में कार्यरत साथिन को जुलाई से लेकर अब तक चार माह का मानदेय नहीं मिला है। पदमपुर ब्लॉक की आशा सहयोगिनों का चार माह से मानदेय नहीं आ रहा। यही हाल आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को है, इन वर्करो को दो महीने से मानदेय और गत अठारह माह से केन्द्र सरकार की ओर से मिलने वाली परिलाभ का भुगतान नहीं दिया जा रहा है। जबकि सहायिकाओ का भुगतान नियमित रूप से मिल रहा है। जरूरतमंद परिवारों के साथ काम कर रही आंगनबाड़ी कर्मियों के नियमित भुगतान के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी सक्रिय नहीं हैं। इसके अलावा, अन्य लाभों की प्रक्रिया भी अटकी हुई है, जिससे उनकी स्थिति और बिगड़ रही है।

उधारी भी बंद हो गई, ऐसे में किसे सुनाएं अपनी पीड़ा

संगठन सचिव मंजू स्वामी का कहना था कि उधारी से काम चलाया जा रहा था, अब उम्मीद थी कि दीपावली पर मानदेय मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। एक ओर सरकार सरकारी स्कूल स्टॉफ को बोनस या महंगाई भत्ता देकर दीपावली की मिठास बांट रही है जबकि आंगनबाड़ी केन्द्रों की अल्प मानदेय भोगियों को खुद का मानदेय समय पर नहीं दिया जा रहा है। उधारी की प्रक्रिया भी अब बंद हो गई है। ऐसे में अपनी पीड़ा किसे सुनाएं।

‘अंगद’ बने बाबू, एक्शन तक नहीं

जिला मुख्यालय में महिला एवं बाल विकास विभाग और सीडीपीओ कार्यालय में तीन बाबुओं ने पूरी जिले की आंगनबाड़ी कर्मियों के भुगतान प्रक्रिया पर अपना दबदबा बना रखा है। ये बाबू पिछले बारह सालों से उसी स्थिति में बने हुए हैं, इसके बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

व्यावसायिक प्रशिक्षकों की भी रहेगी काली दीवाली

इधर, सरकारी स्कूलों में अध्याय आधारित बुनियादी शिक्षा के तहत काम कर रहे व्यावसायिक प्रशिक्षकों को अब तक अपना पूरा मानदेय नहीं मिला है। दीपावली के मौके पर इन युवा प्रशिक्षकों को अपने मानदेय की उम्मीद है, लेकिन उनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं है। इन प्रशिक्षकों ने जिला कलक्टर, सांसद और विधायकों के माध्यम से मुख्यमंत्री को भी अपनी समस्याएँ बताई हैं, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। लालगढ़ की नीरू और श्रीगंगानगर की मीना जैसी प्रशिक्षिकाएं बताती हैं कि व्यावसायिक प्रशिक्षकों की अनदेखी की जा रही है, जो सरकार और शिक्षा नीति के लिए गंभीर चिंता का विषय है। दिवाली की खुशियों के बीच ये प्रशिक्षक अपने हक की लड़ाई जारी रखे हुए हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि कोई उचित समाधान उन्हें जल्द ही मिलेगा।

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