जयपुर। जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित 27वें लोकरंग महोत्सव के 7वें दिन मुक्ताकाशी मंच पर विभिन्न कलाओं का संगम हुआ। शिल्पग्राम के मुख्य मंच पर कालबेलिया, चरी नृत्य, तालबंदी, कबीर गायन, चकरी नृत्य, मांणियार और ब्रज होरी की प्रस्तुति हुई, वहीं रंग चौपाल पर पद दंगल गायन हुआ। इसके साथ ही मध्यवर्ती के मंच पर बिहार से झिझिया, राजस्थान से डेरु व गेर नृत्य, अरूणाचल प्रदेश से न्येंग नै आरम, मध्य प्रदेश से भागोरिया नृत्य, त्रिपुरा से संगरेन मोग नृत्य, गुजरात से मणियार रास व राठवा होली नृत्य, महाराष्ट्र से सोंगी मुखवटे और उत्तराखंड से थड़िया चौफला की प्रस्तुतियां दी गई।
बिहार के झिझिया नृत्य के साथ मध्यवर्ती में कार्यक्रम की शुरुआत हुई। राजस्थान के कलाकारों ने डेरू नृत्य की प्रस्तुति दी। जिसमें शंकर और शक्ति की स्तुति की गई, वहीं अरुणाचल प्रदेश के कलाकारों ने न्येंग नै आरम नृत्य के माध्यम से मेहमानों के स्वागत में की जाने वाली तैयारियों का दृश्य दिखाया। त्रिपुरा के कलाकारों ने संगरेन मोग नृत्य में नववर्ष के स्वागत में प्रस्तुति दी। यह विधा लोकरंग में प्रथम बार पेश की गई जिसे दर्शकों की ओर से काफी सराहा गया।
उत्तराखंड से आए कलाकारों ने ऊंची पहाड़ियों के बीच स्थित गढ़वाल क्षेत्र के पारंपरिक लोक नृत्य थड़िया चौफला प्रस्तुत किया। जिसमें घास काटने वाले (घसियारों) समुदाय की दिनचर्या को नृत्य के माध्यम से दिखाया गया। गढ़वाल में दिन-भर खेतों में काम करने और घास काटने के बाद जब लोग थके-हारे घर वापस आते हैं तो थकान मिटाने के लिए चौक में बैठते हैं और थड़िया चौफला नृत्य करते हैं। इसमें महिला और पुरुष हाथ पर हाथ रखकर तालियां देते हुए चारों तरफ गोला बनाकर घूमते हैं। नृत्य के दौरान घेड़ी (घास रखने की टोकरी) का इस्तेमाल प्रॉप के तौर पर बेहतरीन तरीके से किया गया।
गुजरात के मणियार समुदाय के कलाकारों ने मणियार रास पेश किया, जो आगंतुकों को कृष्ण भक्ति में डूब जाने के लिए प्रेरित करता नजर आया। इसकी खास बात यह रही की कलाकारों ने डांडिया का इस्तेमाल इस बार कुछ अलग अंदाज में किया। वहीं गुजरात के आदिवासी समुदाय राठवा द्वारा प्रस्तुत किए गए होली नृत्य के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।