लोकरंग की रंगारंग प्रस्तुतियों से मुक्ताकाशी मंच गुलजार

जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित 27वें लोकरंग महोत्सव का दूसरा दिन भी लोकसंस्कृति से गुलजार रहा। शिल्पग्राम में लगे मेले में आगंतुकों ने दस्तकारों के हुनर को सराहा और मुख्य मंच पर लोक गायन, चरी, घूमर, गरासिया, चकरी कालबेलिया, भवाई, लोकनाट्य, मांड गायन की प्रस्तुति हुई। मध्यवर्ती के मंच पर ओडिशा, राजस्थान, मिजोरम, जम्मू, उत्तराखंड और हरियाणा के कलाकारों ने मनोहारी प्रस्तुतियां दी। गायन सभा में लोक गायन की सुरीली प्रस्तुति हुई।

मध्यवर्ती के मंच पर ओडिशा के कलाकारों ने ढोल की थाप के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। चरी में ज्योत जलाकर राजस्थान के कलाकारों ने चरी नृत्य पेश किया। मिजोरम के कलाकारों ने चैरो नृत्य की प्रस्तुति दी। आमजन में बैंबू डांस के नाम से प्रसिद्ध यह नृत्य मिजो समुदाय में फसल कटाई, विवाह व अन्य उत्सवों में किया जाता है।

करवा चौथ की पूर्व संध्या पर जम्मू कश्मीर के कलाकारों ने शृंगार रस से ओतप्रोत पंजेब नृत्य की प्रस्तुति दी। ‘छन छन पंजेब बजै’ गीत पर अपने आभूषणों व रूप का बखान करते हुए नायिका ने नायक को घर आने का संदेश भेजा। बाबा रामदेव की महिमा का बखान करते हुए कामड़ समुदाय के कलाकारों ने तेरहताली नृत्य की प्रस्तुति दी। गींदड़ की प्रस्तुति के बाद संबलपुर के कलाकारों ने रसरकेली नृत्य पेश किया। जय संबलेश्वरी मां के जयकारे के साथ प्रस्तुति शुरू हुई। ढोल, निशान, ताशा, झांझ और मुहरी के साथ होली के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है। हरियाणा के कलाकारों ने घूमर की जोश भरी प्रस्तुति दी।

लोकरंग में पहली बार लोक नाटक की चौपाल सजी। रंग चौपाल में नागौर के कलाकारों ने कुचामणी ख्याल की प्रस्तुति दी। राजा हरिश्चंद्र और तारामती के प्रसंग का कलाकारों ने अपने अंदाज में मंचन किया। ‘साधु को सत्कार करणो, मांगे तो सब दान माई देणो’ हरिश्चंद्र के इन वचनों से जनकल्याण की भावना लोगों तक पहुंची। कलाकारों ने बताया कि मारवाड़ में प्रचलित यह कला 300 से 400 साल पुरानी है, जिसमें पाबूजी, देवनारायण जी, राजा मोरध्वज आदि की ख्याल खेली जाती है। रविवार को सायं 4 बजे से रंग चौपाल में उदयपुर के कलाकार गवरी की प्रस्तुति देंगे।

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