नशे की राह पर बढ़ रहा है बचपन,पांच साल में चालीस फीसदी बढ़े

ग्राउण्ड रिपोर्ट

नागौर. नशे की लत नाबालिगों में बढ़ती जा रही है। तम्बाकू/सिगरेट और शराब/बीयर ही नहीं यह अब अमल/डोडा पोस्त से होते ही एमडी/स्मैक तक पहुंच चुकी है। नशे की खुराक पूरी करने के लिए चोरी करने जैसी वारदात में निरुद्ध कई नाबालिगों से पूछताछ में इसका खुलासा हुआ। मजे की बात यह कि नशामुक्ति दिवस समेत इक्का-दुक्का अवसरों पर ही नशाबंदी की सीख इन नाबालिगों को दी जा रही है। पिछले पांच साल में बच्चों में नशे की प्रवृत्ति चालीस फीसदी तक बढ़ गई है।

सूत्रों के अनुसार पिछले तीन साल में मादक पदार्थ बेचने के मामले में कई नाबालिग निरुद्ध हुए। इनमें कई तो एमडी/डोडा-पोस्त की सप्लाई तक में लिप्त पाए गए। और तो और कई चिकित्सक/शिक्षकों के पास तक परिजन अपने बच्चों के नशे की लत छुड़ाने पहुंच रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक चौदह-पंद्रह साल के नाबालिग किशोरों में से करीब बीस फीसदी से अधिक नशे की गिरफ्त में आ चुके हैं। मजे की बात यह कि नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में बाल नशाबंदी का ना कोई कार्यक्रम चल रहा है ना ही कोई एनजीओ इसकी मॉनिटरिंग कर रहा है। सरकारी स्कूलों में बच्चों को इससे रोकने की पुरजोर कोशिश नहीं हो रही है।सूत्र बताते हैं कि पिछले साल एक स्वयंसेवी संगठन की ओर से किए गए सर्वे में भी यह तथ्य उजागर हुए थे। इसमें सामने आया कि चौदह-पंद्रह साल के किशोर में से तीस फीसदी जर्दा/गुटका खाना शुरू कर रहे हैं। यही नहीं पिछले दो साल में ऐसे 47 नाबालिग पाए गए जो डोडा-पोस्त ही नहीं एमडीएमए तक का नशा करने लगे थे। 23 नाबालिग नशे के लिए ही एक कुरियर की तरह मादक पदार्थ की सप्लाई करते पाए गए। बाद में पता चला कि खुद की खुराक पूरी करने के लिए वो ऐसा कर रहे थे।

कोई व्यवस्था नहीं…

नागौर (डीडवाना-कुचामन) में तीन लाख से अधिक नाबालिग 12 से 16 तक उम्र के हैं। स्कूल हो या फिर अन्य कोई संस्थान। यहां तक कि ग्राम पंचायत से शहर तक बच्चों को नशे के प्रति चेताने का कोई प्लान ही नहीं है। गिने-चुने अवसर पर तम्बाकू आदि का व्यसन छोडऩे का संकल्प दिलाकर इतिश्री की जा रही है। गुटका खाने से लेकर अन्य नशा करने वाले बच्चों को स्कूलों तक में नहीं रोका जा रहा, जागरूकता की बात तो अलग है।

नशा छुड़ाने को घूम रहे परिजन…

सूत्र बताते हैं कि मनोचिकित्सकों के पास कई बच्चों के परिजन पहुंच रहे हैं। नशा छुड़ाने की यह कवायद कोई खास सिरे नहीं चढ़ पा रही। इसकी वजह यह भी है कि रोजाना ना तो परिजन वहां तक पहुंच पा रहे हैं ना ही डॉक्टरों की दवा/पाबंदी का कोई खासा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कई बार इसकी भी मांग उठ चुकी है कि बच्चों में बढ़ती नशा प्रवृत्ति को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं पर हालत यह है कि स्कूलों के बाहर जर्दा समेत अन्य नशा खुलेआम बिक रहा है।

एक नजर आंकड़ों पर

पुलिस/चिकित्सक व शिक्षकों से बातचीत में सामने आया कि तीस से पैंतीस फीसदी नाबालिग नशे की शुरुआत कर इसे आदत बना लेते हैं। जर्दा/गुटका से शुरू हुआ नशा शराब के बाद मादक पदार्थ तक पहुंच रहा है, यह बात खुद पुलिस के अफसर तक कबूल कर रहे हैं। बच्चे ही नहीं युवा तक नशे की पूर्ति के लिए चोरी/अपराध कर रहे हैं।

इनका कहना

नशा करने वाले नाबालिगों की संख्या बढ़ती जा रही है। जागरूकता की कमी के साथ परिजन/शिक्षकों की मॉनिटरिंग से ही इस पर काबू पाया जा सकेगा।

-मनोज सोनी, अध्यक्ष बाल कल्याण समिति नागौर

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तय दिनों के अलावा नशे के खिलाफ बच्चों को जागरूक करने का कोई खासा प्लान नहीं है। बच्चों को नशे से रोकने के लिए उन कारणों को भी खोजना होगा जिससे वे ऐसा कर रहे हैं।

-रामदयाल मांजू, सहायक निदेशक बाल अधिकारिता विभाग

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