राज्य के युवा अवसाद में हैं। लगातार आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं। फिर भी सरकार युवाओं के अवसाद को हल्के में ले रही है। राज्य के उच्च शिक्षा के अधीन आने वाले विश्वविद्यालयों में सरकार ने युवाओं की काउंसलिंग के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता का एक भी पद स्वीकृत नहीं कर रखा। ऐसे में विश्वविद्यालयों में तनावग्रस्त युवाओं की काउंसलिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं राज्य की एकमात्र राजस्थान यूनिवर्सिटी (आरयू) में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता का सिर्फ एक ही पद स्वीकृत है। हैरानी की बात है कि 62 साल से यह पद रिक्त चल रहा है। 1962 के बाद से इस पद का अतिरिक्त दायित्व सौंपा जा रहा है। राजस्थान विधानसभा में बगरू विधायक कैलाश शर्मा की ओर से विश्वविद्यालयों में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता के पद पर नियुक्ति को लेकर प्रश्न लगाया गया था। इस पर सरकार की ओर से जवाब पेश किया गया।
अजीब तर्क : विश्वविद्यालय में आत्महत्या के मामले कम
विधानसभा में दिए जवाब में सरकार ने अजीब तर्क दिया है। इसमें कहा कि युवाओं में हताशा और अवसाद के कारण आत्महत्या के बढ़ते मामले प्रदेश के कोचिंग संस्थानों में ज्यादा हैं। विश्वविद्यालयों में उच्च अध्ययन कर रहे बडी उम्र के युवाओं में ऐसी स्थिति का प्रतिशत बहुत कम है। यही कारण है कि विश्वविद्यालयों में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता के पद स्वीकृत नहीं हैं। आत्महत्या के बढ़ते हुए मामलों के कारण युवाओं की काउंसलिंग और मार्गदर्शन से उनको तनावपूर्ण स्थिति से बाहर लाने और उनकी ऊर्जा का रचनात्मक कार्यों में उपयोग करने के लिए प्रदेश के प्रमुख शहरों में युवा साथी केन्द्र स्थापित करने का उल्लेख किया है।
इधर: कोचिंग संस्थानों को दे रखे निर्देश
कोचिंग संस्थानों के विद्यार्थियों को मानसिक सुरक्षा और सम्बल प्रदान करने के लिए सरकार की ओर से गाइड लाइन बनी हुई है। सप्ताह में एक दिन अवकाश रखने, विद्यार्थियों और अभिभावकों की काउंसलिंग करने, कोचिंग छोड़ने पर फीस रिफंड करने और मनोचिकित्सकीय सेवाएं उपलब्ध कराने, तनावग्रस्त बच्चों की पहचान के लिए स्टाफ को गेटकीपर ट्रेनिंग करवाने के निर्देश जारी किए हैं। जिला कलक्टर की ओर से इसकी पालना कराई जा रही है।
मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता का होना जरूरी
विश्वविद्यालयों में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल छात्रों की भलाई के लिए, बल्कि एक स्वस्थ और सकारात्मक शैक्षणिक वातावरण बनाने के लिए भी आवश्यक है। विश्वविद्यालयों में छात्रों को अकादमिक और व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकते हैं। परीक्षा का दबाव, समय प्रबंधन और सामाजिक अपेक्षाएं अक्सर छात्रों में तनाव और चिंता पैदा करती हैं। मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता इन समस्याओं को समझने और प्रबंधित करने में मदद करते हैं। साथ ही उन्हें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करने में मदद करते हैं।
प्रो. अनुराग शर्मा, उद्यमिता एवं कौशल विकास केन्द्र राजस्थान विश्वविद्यालय