Patrika Opinion: वैश्विक जल-चक्र का असंतुलन चिंताजनक

पानी के दुरुपयोग, जल संसाधनों के कुप्रबंधन और भूमि के बढ़ते उपयोग और वनक्षेत्रों में कटौती ने समूचे जल-चक्र को असंतुलित कर दिया है। असंतुलित जल तंत्र को लेकर यह दुनिया की सबसे गंभीरतम अवस्था है जो मानव इतिहास में पहली बार आई है। पृथ्वी के चारों ओर पानी के घूमने की प्रणाली को जल चक्र कहा जाता है, जीवन को संचालित करने के लिए जिसका सुचारु होना आवश्यक होता है। पृथ्वी पर तीन अरब लोग पहले से जल संकट का सामना कर रहे हैं। अब जल-चक्र असंतुलन से न जाने और कितने लोग संकट में आ जाएंगे। बड़ी चिंता यह भी कि इससे दुनिया की जीडीपी को आठ से पंद्रह प्रतिशत तक नुकसान हो जाएगा।

दरअसल, प्रकृति की उपेक्षा के साथ-साथ सिर्फ अपना लाभ देखने की दुष्प्रवृत्ति ही इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। सबसे बुरी बात यह है कि मनुष्य का लाभ अब लोभ में बदलता जा रहा है। इस बदलाव की गति इतनी तेज है कि इंसान आगा-पीछा देखने को भी तैयार नहीं। एक तरह से वह हर प्राकृतिक संसाधन का अतिदोहन कर अपने फायदे को ही देखना चाहता है। जल की बर्बादी, वन क्षेत्रों का खात्मा, पेड़-पौधों पर कुल्हाड़ी, ओजोन परत को नुकसान, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु संकट और इन सब के कारण अंतत: जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर ही आती आंच के रूप में इसके दुष्परिणाम सामने हैं। एक तथ्य यह भी है कि इन दुष्परिणामों की चिंता तो खूब होती रही है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी आवाज बुलंद होती रही है, पर जैसे हालात बनते जा रहे हैं इन चिंताओं का असर ढाक के तीन पात जैसा ही है। इससे भी गंभीर बात यह कि जल-चक्र बिगडऩे से दुनिया का आधा खाद्य उत्पादन ही खतरे में आ गया है। तब उन देशों का क्या होगा, जो पहले से खाद्यान्न संकट को झेल रहे हैं। जाहिर है, संकट में शामिल देशों की फेहरिस्त बढ़ती ही जाएगी। कहना न होगा कि अब भी नहीं संभले और विकास का वैकल्पिक रास्ता नहीं खोजा, तो भयावह स्थिति को कोई नहीं रोक सकता। जल तंत्र के असंतुलन की स्थिति का आकलन कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है। विशेषज्ञों के समूह ‘ग्लोबल कमीशन ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ वॉटर’ ने तथ्यों और परिस्थितियों के गहन वैज्ञानिक अनुसंधानों और विश्लेषणों के बाद भयावह हालात की ओर आगाह किया है।

हालात चिंताजनक इसलिए हुए हैं क्योंकि सभी संसाधनों के क्षरण की गति बेतहाशा बढ़ गई है। समस्या न केवल वैश्विक है बल्कि एक-दूसरे से जुड़ी हुई है, इसलिए वैश्विक स्तर के प्रयासों से ही जल-चक्र के असंतुलन से उत्पन्न परिस्थितियों के समाधान की राह तलाशनी होगी।

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