भीलवाड़ा। यह जादू नहीं, नजरों का कमाल व हाथों की सफाई है। इस प्राचीन कला को जीवित रखने के लिए वह जादू का खेल बच्चों व बड़ों को दिखा रहे है। यह कहना है 20 वर्षीय जादूगर नरेश शर्मा का। संजय कॉलोनी निवासी नरेश से बातचीत-
पत्रिका: आपने यह जादू किससे सीखा?
नरेश: बचपन में जादूगर आंचल को जादू दिखाते देखा। उससे प्रभावित हुआ। उनसे सीखा और अपने स्तर पर और कुछ सीख लिया। आठ साल से जादू दिखाने लगा। अब बच्चों के लिए कार्यक्रम रखता हूं।
पत्रिका: किस प्रकार के खेल दिखाते है?
नरेश: चालीस प्रकार के खेल दिखा रहा हूं। इनमें रूमाल व तस्वीर का रंग बदलना। देवी देवताओं की तस्वीर बनाने। ड्राइंग व फूल बनाना। कबूतर उड़ाना, चॉकलेट बनाना आदि।
पत्रिका: जादू दिखाने के दौरान किसकी मदद मिलती है?
नरेश: बचपन में साथी मदद करते। पापा सुशील कुमार शर्मा से भी काफी कुछ सीखा।
पत्रिका: किस प्रकार का संदेश देना चाहते है?
नरेश: जादू के जरिए सीखने को काफी मिलता है। हम अभी स्वच्छता, साक्षर, पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते है।
पत्रिका: जादू की कला को अभी किसी से खतरा है?
नरेश: बदलते जमाने, मोबाइल व छोटे पर्दे ने जादू के खेल से दर्शक कम किए है। जरूरत है सरकार जादू की कला को बढ़ावा दें।