जिले में बाल श्रमिकों को मुक्त कराने का परिणाम सिफर, सिर्फ अभियान में नजर आते कारिंदें

पड़ताल

नागौर. बाल मजदूरी बंद हो गई या फिर ये किसी को केवल अभियान के दौरान ही दिखाई देती है। पिछले छह महीने की स्थिति देखने से तो लगभग यही लगता है। इक्का-दुक्का ही कार्रवाई हुई है। वैसे एक अप्रेल 2018 से 31 मार्च 2024 तक नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में करीब 105 बाल श्रमिक मुक्त कराए गए। इसके बाद इस साल अप्रेल से सितम्बर तक एक-दो बाल श्रमिक मुक्त कराए गए हों तो भी चर्चा नहीं हुई।

सूत्रों के अनुसार जिला प्रशासन समेत संबंधित विभाग के जिम्मेदारों का इस पर ध्यान नहीं है। चाय-ढाबे से लेकर जोखिम भरे काम में भी बाल श्रमिकों की लिप्तता सबको मालूम है। बावजूद इसके श्रम विभाग हो या फिर कोई अन्य जिम्मेदार, इन पर कार्रवाई नहीं कर रहा। नावां में नमक उत्पादन में सैकड़ों बाल श्रमिक काम कर रहे हैं तो नागौर शहर समेत डीडवाना-मकराना आदि में भी बाल मजदूरी बड़े पैमाने पर जारी है। जा कई बार हल्ला भी मचा, बाल श्रमिकों को मुक्त भी कराया पर परिणाम सिफर रहा। चंद दिनों के बाद ये सब बदस्तूर फिर से चलने लगा। जगह-जगह काम करते बाल मजदूर सिस्टम की पोल खोलते हैं। कागजी खानापूर्ति का यह दिखावा पूरी तरह बालश्रम को खत्म करने के नाम पर ढोंग लगता है।

साल दर साल बाल श्रमिक मुक्त कराने का आंकड़ासूत्र बताते हैं कि एक अप्रेल 2018 से 31 मार्च 2024 तक नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में करीब एक सौ पांच बाल श्रमिक मुक्त कराए गए। एक अप्रेल 2018 से 31 मार्च 2019 तक 12, एक अप्रेल 2019 से 31 मार्च 2020 तक 41, एक अप्रेल 2020 से 31 मार्च 2021 तक 31, एक अप्रेल 2021 से 31 मार्च 2022 तक 4, एक अप्रेल 2022 से 31 मार्च 23 तक 11 और एक अप्रेल 2023 से 31 मार्च 24 तक छह बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया। पिछले छह महीने में इक्का-दुक्का बाल श्रमिक मुक्त कराए गए।

तय तो हुआ बहुत कुछ पर सब सिफर..

कुछ समय पहले प्रशासन ने आदेश जारी कर कहा था कि बाल श्रमिक मिले तो स्थानीय होने पर उसे तुरंत सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलाया जाए। बाल श्रमिकों के नामांकन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी संबंधित कार्मिकों को दी गई थी। ऐसा बालक यदि तीस दिन तक स्कूल से लगातार अनुपस्थित रहेगा तो उसकी सूचना बाल श्रम नोडल अधिकारी को देना तय हुआ था। हकीकत यह कि एक-दो बच्चे भी स्कूल से नहीं जोड़े गए। बाल श्रमिकों के परिवार के व्यस्क सदस्य को मनरेगा सहित विकास कार्य में प्राथमिकता से काम दिलाया जाएगा पर मिला नहीं। हर थाने के बाल कल्याण अधिकारी को बाल श्रम बाहुल्य संस्थान जैसे होटल, ढाबे, कारखाने सहित अन्य व्यावसायिक ठिकानों पर बराबर नजर रख कार्रवाई करने को कहा था। बावजूद इसके धरातल पर कुछ नजर नहीं आया।

इनका कहना

बाल श्रम रोकने में विभागीय कार्मिकों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है। प्रभावी तरीके से विभागीय कार्य योजना लागू करने के साथ फॉलोअप जरूरी है। ताकि ये बच्चे शिक्षा विकास की मुख्य धारा से जुड़ पाए। इसके लिए टास्क फोर्स की नियमित बैठक एवं मीक्षा में दिए जाने वाले निर्देशों की प्रभावी रूप से क्रियान्ववित हो।

डॉ. मनोज सोनी, अध्यक्ष बाल कल्याण समिति, नागौर।

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