Ratan Tata: 75 की उम्र में भी स्वयं हवाई जहाज चलाकर जयपुर आए रतन टाटा, पढ़िए पूरी कहानी

मनोज कुमार शर्मा, पूर्व आइएएस
Ratan Tata story: जयपुर। टाटा समूह के चेयरपर्सन रतन टाटा करीब 75 वर्ष की आयु में स्वयं विमान उड़ाकर जयपुर पहुंचे थे। इस उम्र में भी विमान चलाने का उनका जीवट देखकर मैं दंग रह गया। एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने के साथ ही उनकी सादगी का आभास होने लगा।

रतन टाटा के जयपुर आगमन से पहले ही मैंने राजधानी के एक नामचीन होटल के जनरल मैनेजर को एयरपोर्ट पर मौजूद रहने का निर्देश दिया था, लेकिन हैरानी की बात थी कि टाटा को लेने वहां होटल का कोई अधिकारी या वाहन नहीं था। इससे लगा कि अब होटल प्रबंधन की खैर नहीं।

रतन टाटा सामान्य यात्रियों की तरह कॉकपिट की ओर से बाहर आए। मैंने उनका अभिवादन कर अपना परिचय दिया। प्रत्युत्तर में उन्होंने भी अपना परिचय दिया, जबकि उनके जैसे व्यक्तित्व को परिचय की आवश्यकता नहीं थी। एयरपोर्ट से बाहर निकलते समय मेरे पास ऐंबेसेडर और प्रोटोकॉल अधिकारी के पास पुरानी टाटा इंडिका कार थी।

टाटा के व्यावसायिक सिद्धांतों के तहत उन्होंने टाटा इंडिका में सफर करना ही उचित समझा। सफर के दौरान हम जयपुर की खूबसूरती और अन्य विषयों पर चर्चा करते रहे। उनके पास मुख्यमंत्री से मिलने के लिए थोड़ा समय था, इसलिए वे अपने समूह के होटल में पहुंचे।

मैं सोच रहा था कि होटल में उनका भव्य स्वागत होगा, लेकिन वहां भी ऐसा कुछ नहीं था। मैंने जनरल मैनेजर को फोन किया, पर फोन नहीं उठाया। मैंने सोचा कि यह कैसा व्यक्ति है, जो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है? मैं अकेला ही टाटा को होटल की लॉबी में ले गया।

उन्होंने कहा कि ‘बिजनेस हाउस, जहां कंप्यूटर हो, ऐसा कमरा कहां है?’ फिर वे कमरे में चले गए। कुछ समय बाद लौटे और मुझसे साथ में लंच लेने की इच्छा जताई। मैंने सोचा कि लंच में काफी व्यंजन परोसे जाएंगे। लेकिन उम्मीद के विपरीत सिर्फ ब्रेड में लिपटा हुआ मीठा सा खीरा, स्ट्रॉबेरी शेक लंच के रूप में हमने लिया।

मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद मैंने उन्हें एयरपोर्ट छोड़ा। बाद में होटल के जनरल मैनेजर से उनके न आने का कारण पूछा तो जवाब चौंकाने वाला था। उसने बताया कि टाटा समूह के सभी कर्मचारियों को सख्त निर्देश है कि टाटा समूह के चेयरपर्सन हो या कोई अधिकारी, होटल व्यवसाय सिर्फ टूरिस्ट को अधिक महत्व देने से चलता है। यह बात जानकर मैं टाटा समूह के व्यावसायिक सिद्धांतों से और प्रभावित हो गया।

उनकी दूसरी यात्रा के दौरान भी मेरे पास कई यादगार पल रहे। इस बार वे चैरिटी के उद्देश्य से अपने एनजीओ के तहत आए थे। उनके आगमन पर महंगी कार भेजी गई और होटल में भी भव्य स्वागत हुआ। मैंने उनसे पूछा, ‘पिछली बार आपकी आवभगत नहीं हुई थी?’ इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘इस बार मैं टूरिस्ट के तौर पर आया हूं, प्रेसिडेंशियल सूइट में ठहरूंगा और पूरी फीस अदा करूंगा।’ यह सुनकर मैं उनके व्यक्तित्व का और भी कायल हो गया।

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