Rajasthan News: आज देवी पूजा है यानी महाअष्टमी…। छोटी बच्चियों की मनुहार होगी और उन्हें भोजन कराने के बाद पैर छूकर उनका आर्शीवाद लिया जाएगा, उन्हें देवी तुल्य माना जाएगा…। लेकिन क्या बच्चियों को सिर्फ आज के लिए देवी माना जाएगा…? दरअसल हम बच्चियों की पूजा तो कर रहे हैं लेकिन हमारे बीच हजारों ऐसे राक्षस हैं जो छोटी बच्चियों को बर्बाद कर रहे हैं। राजस्थान पुलिस के आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि छोटी बच्चियों से रेप और छेडछाड़ के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। बड़ी बात ये है कि अस्सी फीसदी से ज्यादा केस में आरोपी परिवार वाले ये कोई नजदीकी ही हैं। औसतन हर रोज छह से ज्यादा बच्चियों को शिकार बनाया जा रहा है।
आठ महीने में रेप और छेडछाड़ के 1500 से ज्यादा केस
दरअसल राजस्थान में इस साल शुरुआती आठ महीने यानी अगस्त महीने तक पोक्सो एक्ट के तहत 1529 केस दर्ज हुए हैं प्रदेश के अलग अलग थानों में । पिछले साल अगस्त महीने तक 1497 केस दर्ज हुए थे। पिछले साल की तुलना में इस साल मामूली बढ़ोतरी हुई है। अधिकतर जो बच्चियां शिकार हो रही हैं उनकी उम्र चार-पांच साल से लेकर तेरह-चौदह साल के बीच है।
अलवर, बीकानेर जैसे शहर और कोटा रेंज में हाल सबसे ज्यादा खराब
शहरों और रेंज के हिसाब से आंकड़ों का अध्ययन किया जाए तो भी लगभग हर रेंज में इस तरह के अपराध बढ़े हैं। अजमेर रेंज में आठ महीने के दौरान 148 केस दर्ज हुए हैं। जयपुर कमिश्नरेट में इनकी संख्या 113 है। जयपुर रेंज में 203 और सीकर रेंज में 99 केस दर्ज हुए हैं। बीकानेर रेंज में 142 और भरतपुर रेंज में 145 मुकदमें दर्ज किए गए हैं। जोधपुर कमिश्नरेट में 45 केस और जोधपुर रेंज में 90 मामले सामने आए हैं। पाली रेंज में 91 और सबसे ज्यादा कोट रेंज में 121 केस पोक्सो एक्ट से संबधित दर्ज किए गए हैं। उदयपुर रेंज में 151 और बांसवाड़ा रेंज में 89 केस सामने आए हैं। शहरों की बात करें तो आठ महीने के दौरान अलवर में 71 केस सामने आए हैं। उसके बाद 61 केस बीकानेर में और 53 केस झालावाड़ जिले में दर्ज हुए हैं। ये प्रदेश के सबसे ज्यादा केस वाले तीन जिले हैं।
पहली बार पुलिस ने पोक्सो के केस किए अलग, तब प्रभावी हो सके जांच
पोक्सो एक्ट से संबधित केसेज को लेकर राजस्थान पुलिस भी बेहद गंभीर हैं। पिछले साल तक इसकी गणना कुल रेप केस में की जाती थी। लेकिन इस साल से राजस्थान पुलिस ने पोक्सो केसेज की गणन अलग से करना शुरू कर दिया है। ताकि इस तरह के केसेज को गंभीरता से लिया जा सके और तुरंत प्रभावी कार्रवाई भी की जा सके। इन केसेज की अलग से प्रभावी कार्रवाई करने के उचित परिणाम भी सामने आ रहे हैं और कोर्ट से भी इन केसेज के आरोपियों को जल्द से जल्द सजा मिल रही है।
टॉफी और चॉकलेट में ही बात मान जाते हैं बच्चे, इसलिए आसान शिकार….क्या कहते हैं एक्सपर्ट
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अनिता गौतम का कहना है कि छोटी बच्चियों के साथ दरिंदगी करने वालों की मानसिकता विकृत होती है। ज्यादातर केस में देखा गया है कि आरोपियों ने वारदात को अंजाम देने से पहले शराब पी रखी होती है या पॉर्न देख रहे होते हैं। ऐसे में इन्हें सबसे कमजोर विक्टिम बच्चे ही नजर आते हैं। क्योंकि बच्चे विरोध नहीं कर पाते और इनकी पहचान भी नहीं हो पाती है। टॉफी और चॉकलेट जैसे आसान लालच में ही बच्चे साथ जाने को तैयार हो जाते हैं। परिवार के साथ ही हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चे किसी विपदा में ना पड़ें।