पुनर्वास के नाम पर घर भेजे बच्चों का बसर मुश्किल, स्कूल छूटा सो अलग

ह्यूमन एंगल

नागौर. आसरा छिन गया, पुनर्वास के लिए घर लौटे भी तो वहां बसर करना मुश्किल हो गया। कहीं अकेली मां या पिता तो कहीं वृद्धा दादा -दादी। कहीं कहने को अपना कोई नहीं। मजबूरी के साथ गरीबी के बीच उनका लालन-पोषण कैसे हो, उस पर तुषारापात यह कि स्कूल छूट गया, साल खराब होना भी लगभग तय सा है। ऐसे में ये बच्चे कभी एडीएम के पास तो कभी अपनी पुरानी शरणस्थली चोखा घर/बाल घर जाकर गुहार लगाने में लगे हैं। कभी सिसक उठते हैं तो कभी फफकने लगते हैं, नसीब में आगे क्या लिखा है, यह भी किसको पता है।

तकरीबन दो दर्जन बच्चों की यह व्यथा जो सुन रहा है, सोचने पर मजबूर हो जाता है। आखिर वो करे तो क्या करे और बच्चों की अच्छाई के लिए हो तो क्या? तकरीबन एक पखवाड़े पूर्व चोखाघर के विजेंद्र भाटी के मारपीट करने के बाद कुछ बच्चों ने एसपी ऑफिस जाकर बखेड़ा कर दिया। बात इतनी बढ़ी कि मामला कोतवाली थाने में दर्ज हुआ, बाल कल्याण समिति के साथ समाज कल्याण विभाग के जिम्मेदार तक ग्रीनवेल चिल्ड्रन सोसायटी की ओर से संचालित चोखाघर के खिलाफ हो गए। यहां रहने वाले सभी 23 बच्चों को पुनर्वास के नाम पर यहां से निकाल दिया गया। ऐसे में उनकी पढ़ाई भी छूट गई और पुनर्वास के नाम पर सिंगल पेरेंट के भरोसे ना तो सुकून मिल पा रहा है ना ही शिक्षा।

असल में यहां रहकर ये 23 बच्चे राठौड़ी कुआ स्थित राजकीय माध्यमिक स्कूल में पढ़ रहे थे। चोखाघर में उनके रहने के साथ खाने-पीने के अलावा खेलने-कूदने के साथ लाइब्रेरी आदि की व्यवस्था है। अब बच्चों को पुनर्वास के नाम पर उनके गांव/घर भेजने की इस कोशिश में उनकी पढ़ाई छूट गई। उनके अपनों ने उनको पालने में मजबूरी जता दी। दो बच्चे भीख मांगते देखे गए तो एक बच्चा बाल मजदूरी करते मिला। कई बच्चे फिर से स्कूल/ शरणस्थली छिन जाने के बाद सड़क पर आ गए। अब मुश्किल यह खड़ी हो गई कि बच्चों के पुनर्वास के साथ उनकी पढ़ाई ना छूटे, इसके लिए क्या हो?

एक दसवीं तो छह नवीं के विद्यार्थी

चोखा घर में रहकर राठौड़ी कुआ स्थित इस सरकारी विद्यालय में पढऩे वाले 23 बच्चों में से एक दसवीं तो छह नवीं के विद्यार्थी हैं। छह पांचवी तो एक आठवीं बोर्ड का स्टूडेंट है। इसके अलावा सातवीं, तीसरी, पहली-दूसरी के भी बच्चे हैं। कहा यह जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के चलते बच्चों को वापस उनके गांव/घर भेजकर पुनर्वास के आदेश मिले हैं, ऐसे में यह किया जा रहा है। जबकि बच्चों के रहने-खाने के साथ पढऩे का क्रम टूट रहा है, इसको लेकर कोई ठोस इंतजाम नहीं हो रहा। इस सत्र को समाप्त होने में पांच-छह महीने बाकी हैं, ऐसे में बच्चों की शिक्षा ना छूटे इसके लिए वैकल्पिक इंतजाम जरूरी है।

मुश्किलें ऐसी-ऐसी..

अनाथ होने की मजबूरी कहें या बदले वक्त के चलते हिस्से में आई बदनसीबी। अब मुश्किलें भी थमने का नाम नहीं ले रहीं। चोखाघर में कई साल से रह रहे बच्चों के साथ मुश्किलें अनेक हैं। उनको पुनर्वास के नाम पर गांव/घर भेज तो दिया गया है पर अधिकांश की स्थित बेहद कमजोर है। यूं कहें कि वो बच्चों का लालन-पालन करने में समक्ष नहीं है। उन्हें यह भी चिंता है कि बच्चे की पढ़ाई ना छूट जाए, बच्चा अपराध के दल-दल में ना फंस जाए। ऐसे में अब इन्हें पालना भी उनके लिए कड़ी चुनौती से कम नहीं ।

…इनका कहना

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना के चलते जिला बाल संरक्षण इकाई को बच्चों को शिक्षा से जोडऩे के संबंध में दिशा-निर्देश दिए हैं। बच्चों की पढ़ाई ना छूट पाए, इसके हरसंभवन प्रयास किए जाएंगे।-मनोज सोनी, अध्यक्ष बाल कल्याण समिति नागौर

इस संबंध में बच्चों के पेरेंटस से सम्पर्क किया गया, अधिकांश का मानस है कि जहां बच्चे पढ़ रहे थे वहीं व्यवस्था हो जाए तो ठीक है। बाकी वे भी बच्चों को शिक्षा नहीं छोडऩे देंगे। हर पेरेंट्स की समझाइश की जा रही है।

-रामदयाल मांजू, सहायक निदेशक, बाल अधिकारिता विभाग नागौर

बच्चों से मारपीट करने वाले विजेंद्र भाटी को तुरंत निकाल दिया था। सरकार से अनुदान भी करीब दो साल से बकाया चल रहा है। बावजूद इसके बच्चों को पढ़ाने/रहने की व्यवस्था वे अपने स्तर पर कर सकते हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई ना छूटे, साल खराब ना हो।

-साहिबराम चौधरी, प्रतिनिधि, चोखा घर नागौर।

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