बीकानेर. कहते हैं व्यक्ति कहीं भी रहे, मन में अपनी माटी, कला, संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहने की ललक रहती है, तो न साधन का अभाव होता है और न ही स्थान का। व्यक्ति अपनी मेहनत और लगन से एक ऐसा बीज रोपित कर ही देता है, जो आने वाली शताब्दियों में एक वट वृक्ष का रूप धारण कर लेता है। ऐसा ही हो रहा है शारदीय नवरात्र में बंगाली समाज की ओर से मनाए जा रहे दुर्गा पूजा महोत्सव का। शहर में वर्ष 1942 से बंगाली समाज की ओर से दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।
गंगा नदी व स्थानीय सरोवर की मिट्टी से तैयार
दुर्गा पूजा महोत्सव आयोजन से जुड़े बिश्वजीत घोषाल के अनुसार बीकानेर में बंगाली समाज की दुर्गा प्रतिमा बंगाल से लाई गंगा नदी की मिट्टी और स्थानीय पवित्र सरोवरों की चिकनी मिट्टी से तैयार होती है। घास, बांस, सूतली से शुरुआती आकार दिया जाता है। पर्यावरण अनुकूल रंगों से रंग कर वस्त्र, आभूषण पहनाएं जाते हैं व अस्त्रों से देवी प्रतिमा को सुसज्जित किया जाता है।
स्थान बदले, महोत्सव अनवरत जारी
बिश्वजीत घोषाल व बंगाली समाज के लोगों के अनुसार बीकानेर में वर्ष 1942 से दुर्गा पूजा महोत्सव के प्रारंभ होने का इतिहास है। वर्ष 1947 से निर्बाध रूप से मां दुर्गा, मां काली, मां सरस्वती की पूजा के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। शुरू के वर्षों में स्थायी स्थान के अभाव में विभिन्न स्थानों यथा कलावती भवन, गंगाशहर रोड, जज साहब की कोठी रानी बाजार, एमईएस बंगला रेलवे ऑफिस के पास स्थानों पर आयोजन हुए। ऐसी स्थिति में डॉ. ज्ञानेन्द्र कृष्ण मुखर्जी (तत्कालीन अधीक्षक पीबीएम अस्पताल) ने रानी बाजार स्थित अपनी निजी जमीन पर पूजा आयोजन के लिए भवन निर्माण का निर्णय लिया। तब डॉ. मोती लाल घोषाल, ज्योतिषचद्र घोष, डॉ. हेमचन्द्र राय, टीडी मुखर्जी, ए सी भट्टाचार्य, काली पदो बाबू, ओ के बनर्जी, पंकज कुमार दास व समाज के अन्य लोगों ने तन, मन व धन से सहयोग कर भवन का निर्माण करवाया। वर्ष 1959 में पहली बार नवनिर्मित भवन में मां दुर्गा की पूजा आरंभ की गई, जो निरंतर जारी है।
गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी व सरस्वती की भी प्रतिमाएं
शर्मा कॉलोनी, रानी बाजार स्थित बंगाली मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा का स्वरूप दशकों से एक जैसा है। हर साल मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ भगवान गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी और सरस्वती की भी प्रतिमाएं तैयार की जाती हैं। मां दुर्गा की प्रतिमा दस भुजी होती है। हाथों में त्रिशूल, खडग, गदा, शंख, चक्र इत्यादि अस्त्र होते हैं। प्रतिमा के साथ मां का वाहन सिंहराज व महिषासुर भी होता है। महोत्सव में मां काली और मां सरस्वती की अलग से पूजा होती है। हर साल नई प्रतिमा तैयार होती है।
बंगाली परंपराअनुसार पूजन
संस्थान अध्यक्ष संदीप साहा के अनुसार लगभग 20 दिन में देवी प्रतिमा बनकर तैयार होती है। वर्तमान में बंगाल से आने वाले कलाकार प्रदीप व उनके सहयोगी इसे तैयार करते हैं। पंचमी से दशमी तक मुय पूजन महोत्सव होता है। बोधन, कल्परंभ, आमंत्रण, अधिवास, पुष्पाजंलि, संध्या आरती, व्यक्ति पूजा, संधि पूजा, बलिदान, हवन, दर्पण बिसर्जन, सिंदूर उत्सव, प्रतिमा बिसर्जन, शांतिजल सहित अनेक पारंपरिक रीति रिवाजों के अनुसार पूजा-अर्चना होती है। संस्थान के बबलू कुमार पुरकाईत, राजेश पाडुई, सुजोय आश, सतीश गुप्ता, वासुदेव गोस्वामी, डॉ. ज्योत्सना ओझा आदि तैयारियों में जुटे हुए हैं।