रावचरिया माता मंदिर के समीप ऐतिहासिक महत्व का प्राचीन सोनारो का कुआं गत तीन दशक से उपेक्षा के चलते इन दिनों झाड़ियों में सिमटा हुआ है और बदहाल अवस्था में हैं। कभी इस प्राचीन कुआं पर न केवल ग्रामीणों की बल्कि पशुओं के भी पानी पीने के लिए भीड़ लगती थी। इस कुएं की उपेक्षा का दौर बदस्तूर जारी है।जानकारी के अनुसार कुएं का जल संरक्षण के लिए काफी महत्व है। अधिकांश लोग सरकारी नल के पानी पर निर्भर हो गए हैं। अब वे दिन बीत गए जब कुआं हर घर की जरूरत थी। मौजूदा समय में अब इसके अस्तित्व पर खतरे का बादल मंडरा रहा है। गांव आस पास के करीब दर्जनों कुओं का अस्तित्व संकट में हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि एक जमाने में कुआं जल संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन होता था। तपती धूप में कुआं राहगीरों के लिए पानी पीने का एक मात्र जरिया हुआ करता था। वर्षों पहले लोग कुआं जनहित में खुदवाते थे। पूरे गांव के लोगों के लिए कुआं खेतों की सिंचाई, स्नान व पीने के लिए पानी का महत्वपूर्ण साधन था, लेकिन अब यह सपना मात्र रह गया है। उपेक्षा के चलते कुआं का अस्तित्व समाप्त हो रहा है।
कुएं के पानी से होती थी पूजा
जीर्णोद्धार की दरकारकस्बे में सबसे अधिक पुराने सोनारो के कुआ के वजूद को बचाने के लिए उसके जीर्णोदार की जरूरत है। इसके पास पशुओं के पानी पीने की खेली बनी हुई है, वहीं समीप ही बड़ा कुंड भी बना हुआ है, जिसमे से पानी लेकर ग्रामीणों के दारा स्नान किया जाता था। कुएं का लंबे समय तक जलदाय विभाग ने भी उपयोग लिया। गत दो दशक में जलदाय विभाग ने भी यहां से अपना कार्य समेट लिया।