खानपुर. प्रदेश में ईंधन के परम्परागत साधनों के बजाय इसके वैकल्पिक चीजों पर नवाचार हो रहा है। इन वैकल्पिक चीजों से लकड़ी या कोयले की खपत कम हुई है।
खानपुर. प्रदेश में ईंधन के परम्परागत साधनों के बजाय इसके वैकल्पिक चीजों पर नवाचार हो रहा है। इन वैकल्पिक चीजों से लकड़ी या कोयले की खपत कम हुई है। कहीं लकड़ी की जगह गोकाष्ट का उपयोग किया जा रहा है तो कहीं सरसों के भूसे [तूड़ी] से ब्लॉक्स बनाकर कोयले की जगह उपयोग किया जा रहा है। हाल ही में झालावाड़ जिले के खानपुर कस्बे में बायोफ्यूल के रूप में सरसों के भूसे से ब्लॉॅक्स का निर्माण शुरू हुआ है। सारोला रोड पर स्थापित इस प्लांट में कुछ माह पहले ही यहां उत्पादन शुरू हुआ है। मांग भरने से सरसों के भूसे की कीमतों में भी दोगुनी बढ़ोतरी हुई है।
यहां भूसे को कम्प्रेस कर ब्लॉक्स बनाकर इन्हें गुजरात के जामनगर में भेजा जाता है। यहां रिलायंस कम्पनी देश के अलग अलग प्लांटों में मांग के अनुरूप इसे सप्लाई करती है। वर्तमान में कोयला महंगा होने के कारण देश के कई प्लांटों में कोयले के स्थान पर इस बायो फ्यूल का उपयोग होने लगा है। फिलहाल इसका 5 प्रतिशत तक उपयोग हो रहा है। अगले 5 वर्षो में इसके बढ़कर 20 प्रतिशत तक होने की संभावना है। सरकार बायो फ्यूल को बढ़ावा देने के लिए यह प्लांट लगाने के लिए 30 प्रतिशत सब्सिडी भी दे रही है।
40 टन भूसे की प्रतिदिन खपत
इस प्लांट में ब्लॉक्स बनाने के लिए प्रतिदिन 40 टन भूसे की खपत हो रही है। धीरे-धीरे इसकी क्षमता बढ़ाकर 150 टन प्रतिदिन तक की जाएगी। प्लॉन्ट के निदेशक अश्विन कुमार नागर ने बताया कि प्रदेश में झालावाड़ के खानपुर, बारां के मेरमा व टोंक के देवली में ही यह प्लांट स्थापित है। नागर के अनुसार इस प्लांट को लगाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण मंडल से एनओसी के साथ चलाने की स्वीकृति, फ ायर एनओसी व स्थानीय निकाय का अनापत्ति प्रमाण समेत कई औपचारिकताएं पूरी करनी होती है। गर्मी में प्लांट की खपत अनुसार भूसे के स्टॉक के लिए कई बीघा भूमि लीज पर लेनी पड़ती है।
बिना रसायनों से बने रहे ब्लॉक्स
यहां संचालित प्लांट में भूसे से ब्लॉक्स बनाने के लिए किसी भी प्रकार के रसायन व अन्य रॉ मटेरियल की जरूरत नहीं पड़ती। स्टॉक किए गए भूसे की सफाई कर धूल मिट्टी व अन्य कचरे को अलग कर नमी को समाप्त किया जाता है। इसके बाद एक निर्धारित तापमान पर इन्हें कम्प्रेस कर ब्लॉक्स का निर्माण किया जाता है।
वर्ष भर भूसे की करनी होती है सारसंभाल
प्लांट के लिए आसपास के खेतों में हजारों टन भूसे का संग्रहण कर वर्ष भर सारसंभाल करनी पड़ती है। भूसे के ढेरों को पालिथिन से ढककर ऊपर से भूसा व पानी डालकर डालकर इसके चारों और आवरण तैयार किया जाता है। आग से बचाने के लिए ट्यूबवैल के अलावा चारों ओर नाली खोदने के साथ ही सुरक्षा के लिए फायर सिस्टम पर 24 घण्टे कर्मचारी तैनात रहते है। ऑफ सीजन में महज एक दर्जन कर्मचारी प्लांट को चलाने के लिए पर्याप्त है, जबकि सीजन के समय 40 से 50 श्रमिकों की जरूरत पड़ती है।
भूसे पर दोगुनी आय
किसान पहले भूसे को बिचौलिए को 100 से 150 रुपए प्रति क्विंटल में बेच रहे थे। प्लॉन्ट लगने के बाद यह भूसा अब 325 रुपए प्रति क्विंटल दर से किसान बेच रहे है। प्रति बीघा 5 से 6 क्विंटल भूसे का उत्पादन होने से किसानों को 2 हजार रुपए बीघा की अतिरिक्त आय होने लगी है। इस भूसे को बेचने से किसानों को फसल कटाई से लेकर तैयार करने का समूचा खर्चा निकल रहा है।
कोयले से लागत कम
भूसे से बने ब्लॉक्स कोयले से सस्ता होने के साथ बायो फ्यूल होने से सरकार इसे प्राथमिकता दी जा रही है। नागर ने बताया कि यह ब्लॉक्स प्लांट में उपयोग होने वाले कोयले से 4 से 5 हजार रुपए टन सस्ता है। यह कोयले की तुलना में अधिक ज्वलनशील हैं।