जगजीत सरीन
लेखक डालबर्ग एडवाइजर्स में पार्टनर हैं और जलवायु विभाग का सह-नेतृत्व करते हैं
जलवायु परिवर्तन का असर दुनिया के हर कोने में देखने को मिल रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के नए आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2023 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2024 में तापमान इससे भी अधिक रहेगा। बढ़ता तापमान केवल मौसम को ही नहीं बदल रहा बल्कि पूरी दुनिया में असमानता की खाई और गहरी कर रहा है। कम-आय वाले देश और समुदाय, जिनका कार्बन उत्सर्जन में योगदान सबसे कम है, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। अगर हमें इस संकट से निपटना है, तो हमें अपनी सोच बदलनी होगी। इस लड़ाई में जो लोग दो डॉलर प्रतिदिन से भी कम कमाते हैं , उनकी आवाज और जरूरतों को सबसे आगे रखना होगा।
प्रसिद्ध विचारक सी.के प्रह्लाद ने अपने सिद्धांत ‘द फॉच्र्यून एट द बॉटम ऑफ द पिरामिड’ में गरीबी हटाने के लिए बाजार-आधारित समाधान प्रस्तुत किए थे। उनका सुझाव था कि बड़ी कंपनियां अगर गरीब उपभोक्ताओं पर ध्यान दें, तो एक नया बाजार खुल सकता है, जिससे मुनाफे के साथ-साथ लाखों लोगों की जिंदगी सुधारी जा सकती है। क्या प्रह्लाद का यह सिद्धांत जलवायु परिवर्तन से लडऩे में भी मदद कर सकता है? हमें ऐसा करने के लिए नए और दूरगामी विचारों की जरूरत है। कम-आय वाले समुदायों में हरित उद्यमिता का समर्थन करना ऐसा एक तरीका हो सकता है। हरित उद्यमिता ऐसे व्यवसायों को कहते हैं जो पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद या सेवाएं विकसित करते हैं। जलवायु परिवर्तन के संकट से प्रभावित लोगों की जरूरतों के अनुसार अगर उन्हें प्रशिक्षण, संसाधन और प्रोत्साहन दिया जाए, तो वे ख़ुद नए समाधान ढूंढ सकते हैं। इससे न सिर्फ नए व्यवसाय खुलेंगे, बल्कि लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
उदाहरण के लिए, ओडिशा की महिलाओं ने चक्रवातों और बढ़ते समुद्री जल स्तर के कारण होने वाली समस्याओं के सरल और प्रभावी समाधान तैयार किए हैं। उन्होंने वनों के पुनर्वास के लिए मैंग्रोव नर्सरी की स्थापना की, जिससे आय भी उत्पन्न होती है तथा पानी की लवणता से निपटने के लिए तैरते हुए बगीचे बनाए हैं। ये छोटे खेत बांस से बने होते हैं और इनमें सूखी जलकुंभी, खाद और गाद जैसी स्थानीय सामग्री का उपयोग किया जाता है। इन बगीचों में महिलाएं मसाले और सब्जियां उगाती हैं, जिससे उन्हें भोजन के साथ आय भी प्राप्त होती है। कम-आय वाले समुदायों के बीच हरित उद्यमिता को बढ़ावा देना न केवल उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा बल्कि जलवायु समाधानों को अधिक किफायती बनाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। कम-आय वाले समुदाय अक्सर स्थानीय संसाधनों और सामग्रियों का उपयोग करके अभिनव समाधान विकसित करने में सक्षम होते हैं। वे कम लागत वाले ऐसे समाधानों का निर्माण कर सकते हैं, जो मौजूदा विकल्पों की तुलना में अधिक किफायती हों। चूंकि ये समाधान स्थानीय स्तर पर विकसित किए जाते हैं, इसलिए इनके रखरखाव और मरम्मत की लागत भी कम हो जाती है जो उन्हें बड़े पैमाने पर अपनाने में हिचक नहीं होती और वे उपयोगी साबित होते हैं। इस प्रकार, कम-आय वाले समुदायों में हरित उद्यमिता को बढ़ावा देना गरीबी कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक प्रभावी तरीका है। इससे जलवायु समाधानों को अधिक किफायती और सभी के लिए सुलभ बनाने में भी सहायता मिल सकती है। ग्रामीण समुदाय और छोटे किसान सदियों से मौसम के अनुसार अपनी उत्पादन प्रणालियां विकसित करते रहे हैं। इस परंपरागत ज्ञान को अगर व्यवस्थित रूप दिया जाए तो जलवायु परिवर्तन से बेहतर लड़ाई संभव है। 2022 की एक जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आइपीसीसी) रिपोर्ट भी इस ज्ञान को जलवायु अनुकूलन में कारगर मानती है। जरूरत है इस ज्ञान को बड़ी कंपनियों, सरकारी संस्थाओं और स्थानीय संगठनों तक पहुंचाने की, ताकि जमीनी अनुभवों से समावेशी समाधान तैयार हो सके।
जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित समुदाय को जलवायु समाधान के केंद्र में रखने से विकासात्मक प्रयासों को बल मिलेगा। इससे केवल सहायता पर निर्भर रहने की बजाय, इन समुदायों में कौशल निर्माण और उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा। कम-आय वाले समुदायों को मूल्य-सृजनकर्ता और समाधानदाता के रूप में स्थापित करना, विकास के लिए वित्तीय सहायता को एक नए रूप में देखने का एक प्रभावशाली तरीका है। ऐसे आत्मनिर्भर प्रयास कम आय वाले समुदायों को लाभार्थी के बजाय साझेदार के रूप में शामिल होने देते हैं। इस प्रकार की हरित उद्यमिता हमें उस भविष्य की नींव रखने में मदद करेगी, जहां जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से न्यायपूर्ण तरीके से निपटा जा सकता है।
(सह-लेखक: शिवांश कर्णिक अवस्थी, डालबर्ग एडवाइजर्स में सह-सलाहकार)