जयपुर । प्रदेश के अलवर जिले में सरिस्का टाइर रिजर्व में हार्ड क्लाइमेट, भोजन की भरपूर व्यवस्था और चहलकदमी को लेकर बड़ा जंगल बाघों को भा रहा है। यही वजह है कि सरिस्का के बाघ देश के अन्य टाइगर रिजर्व के बाघों के मुकाबले दो से तीन साल ज्यादा जी रहे हैं। बाघों की औसत आयु 15-6 साल मानी जाती है। लेकिन यहां कई बाघ 18- 19 साल की आयु तक जिंदा रहे हैं। सरिस्का में प्राकृतिक मौत वाले बाघों की उम्र 18 साल रही जबकि कुछ बाघों की असमय भी मौत हुई।
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सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों का हाल
वर्ष 2005 के बाद सरिस्का में अब तक 7 बाघों की मौत हुई है। वहीं दो अभी लापता हैं। मृत बाघों में बाघ एसटी-1 की जहर देने, बाघिन एसटी-2 व 3 की प्राकृतिक मौत, बाघ एसटी- 4 व 6 की बीमारी में मौत, बाघिन एसटी-5 व बाघ एसटी-13 लापता, बाघ एसटी-11 की खेत में लगे फंदे में फंसने से मौत हुई। बाघ एसटी-16 की हीट स्ट्रोक से मौत हुई। सरिस्का में यदि वनकर्मियों की नफरी पूरी रहती तो बाघ एसटी-1, बाघिन एसटी- 5, बाघ एसटी-11 और 13 को बचाया जा सकता था।
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बाघिन एसटी- 2 की आयु सबसे ज्यादा
सरिस्का में सबसे लंबे समय तक बाघिन एसटी-2 जीवित रही। यह बाघिन करीब साढ़े 19 साल जीवित रही। अंतिम समय में इस बाघिन की पूंछ पर घाव होने के कारण इलाज के दौरान बाघिन की मौत जनवरी में हो गई थी। इसके अलावा बाघिन एसटी-3, बाघ एसटी- 6 की करीब 18 साल की आयु में मौत हुई थी।
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बाघों के लिए भोजन की समस्या नहीं
सरिस्का में बाघों को लंबा जीवन मिल पाने का कारण यहां की भौगोलिक परिस्थिति व प्राकृतिक संसाधन हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार यहां का जंगल बाघों के अनुकूल है। खास बात यह कि यहां बाघों के लिए भोजन की समस्या नहीं है। यहां पानी की सुविधा भी बेहतर है। साथ ही हरियाली एवं विचरण के लिए खुला जंगल है। इस कारण सरिस्का बाघों को लंबी आयु देने वाला जंगल बन रहा है। मालूम हो कि वर्ष 2005 में सरिस्का बाघविहीन हो गया था। अब संख्या 43 पहुंच गई।